गहरे पानी पैठ
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संभव है
सूख जांय सरिताएं
सागर को खोजते खोजते
पर-
संभव नहीं
बसा लें वे
डबरों की बास
अपने तन में ,मन में .
मेरा काशी
मेरा काबा
मेरी नज़रों में है
जिधर देखता हूँ,
उधर तू ही तू
क्यों कहते हो मुझे
दिशा हीन ?
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