Menu
blogid : 19172 postid : 1305745

नोटबंदी न होती, तो क्या होता ?

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
  • 124 Posts
  • 267 Comments

नोटबंदी न होती तो राष्ट्र निर्माण का पुनीत कार्य कभी संभव न था. नोटबंदी न होती तो राष्ट्र भ्रस्टाचार के नर्क से उबर न पाता..परेशान सब थे पर समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. अक्सर लोग घुटनो को अपने पेट की और झुकने का पूरा अवसर देते हैं, किन्तु ऐसा उचित नहीं. विचार अभिव्यक्ति समाज के हित के लिए हो तो ही सार्थक है. भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा नोटबंदी का फैसला लिये जानें पर यदि विचार किया जाना आवश्यक है तो पूर्वआग्रह को उतार फेकना होगा ..
नोटबंदी का फैसला न लिया जाता तो पाकिस्तान में नकली नोटों की छपाई के द्वारा काले धन का वैश्विक धंधा अपने शीर्ष पर होता. आतंकवादियों को असलहों की सुगमतापूर्वक उपलब्धि होती रहती . नक्सली क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बद से बदतर हो जाती. किन्ही मायनो में नक्सलवाद आतंकवाद से भी हानिकारक है. यह तो ऐसा नासूर है जो अपने शरीर में ही रहकर अपने शरीर को काटता है. इससे निजात पाना राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी चुनोती होती है. इसमें तो स्वेक्षा से अपने शरीर की सुरक्षा के लिए अपने शरीर का ही आपरेशन कराना पड़ता है .
नोटबंदी से इस बीमारी को उपलब्ध होने वाली खुराक बंद हो गई. यह नोटबंदी का ही परिणाम था की विगत कुछ समय में हजारों की संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया. और राष्ट्र की मुख्य धारा से आ जुड़े. जहाँ तक प्रश्न आतंकवाद का है, इसमें एक विकल्प तो हमारे पास होता ही है कि हम इस बीमारी को अपना आपरेशन किये बिना भी ख़त्म कर सकते हैं. नोटबंदी के बाद यह प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिला है कि हमारा निकटवर्ती मुल्क इतना हतोत्साहित हुआ है कि उसकी मेरुदंड ही टूट गई .
नोटबंदी से जनता में ख़ुशी की एक लहर दौड़ गई है जिसे आंधी कहना अतिशयोक्ति न होगा. भारत का विपक्ष भी नोटबंदी के पूरे पक्ष में है, यदि कहीं किसी ने कोई ऐतराज भी उठाया है तो बस इतना की नोटबंदी से पहले व्यवस्था का आंकलन ठीक से नहीं किया गया. विपक्ष द्वारा ऐसे ऐतराजों का उठाया जाना कोई मायने नहीं रखता क्योंकि ऐसे मामलों में तत्कालीन निर्णय ही प्रभावी होते हैं. चूँकि नोटबंदी की उद्घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री ने देश की जनता से पचास दिन तक परेशानी उठाये जाने के लिए पूर्व प्रार्थना कर ली थी, जिसे देश की जनता ने अदम्य साहस से सहन भी किया. इसमें अगर कोई परेशानी दिखाई दे रही है तो यह कि विपक्ष स्वयं जनता के नाम पर अपनी परेशानी का इजहार कर रहा है. अस्तु यह सब विपक्ष का अपनी निजी क्षति, काले धन का रोना है जिसका कोई इलाज नहीं और न होना चाहिए . . .
यह कहना कि नोटबंदी न होती तो देश की हालत अच्छी होती विपक्ष की मानसिकता का दिवालियापन है. नोटबंदी के अनंत लाभ गिनाये जाएँ तो उज्जवल भविष्य का एक अध्याय ही खुल जायेगा. नोटबंदी को लांछित करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करना ऐसे समय जब की राष्ट्र निर्माण का प्रदेश स्तरीय निर्वाचन पर्व चल रहा हो, किसी भी प्रकार उचित नहीं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh