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रीति प्रीत की….

गहरे पानी पैठ
गहरे पानी पैठ
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हृदय वीणा को बजा दो,
प्यार का तुम गीत गा दो,
जो हवा हर ओर बहती,
वह हवा मृदुतर बना दो !
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रंग दो ऐसे रंग में चादर,
मिटे द्वंद सब पायें आदर,
एक गगन के नीचे सब मिल,
रहें प्रेम से रीति सीखा दो !
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रोज बने बिगड़े क्यों रेखा,
क्यों देखें जो अब तक देखा,
देश धर्म लाशों के ऊपर,
मेरे प्रभु ये रीत मिटा दो !
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मजबूरी की भाषा ना हो,
जो खटके वह आशा ना हो,
लेन देन की सुचिता समझे,
हे प्रभु ऐसा मीत मिला दो !

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