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आई. पी. एल. ऑक्शन और भारतीय खिलाडी
इंडियन प्रीमियर लीग (आई पी एल) की स्थापना का मुख्य उद्देश्य केवल पैसा कमाने की एक संस्था खड़ा करना था. इसकी स्थापना भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड (B.C.C.I.) ने की थी। आज इस संस्था से व्यापारी वर्ग के लोगों ने खूब पैसे कमाए और खिलाडियों ने भी। परन्तु इसने क्रिकेट की ऐसी हालत कर दी है कि केवल कुछ खाली लोग ही अथवा क्रिकेट को बहुत ज्यादा पसंद करने वाले लोग ही इसके आयोजन का इन्तजार करते नजर आते हैं। आई पी एल बनने से पूर्व सामान्य लोगों में क्रिकेट का एक जूनून हुआ करता था लोग बहुत ही बेसब्री से क्रिकेट का इन्तजार करते थे।
कई मैच में तो लोग अपने आफिस से भी समय निकल कर क्रिकेट देखते थे, छात्र उस दिन का स्कूल तक छोड़ देते थे, कई लोग दुकानों पर केवल क्रिकेट देखते थे। ऐसी जगहें देखने को मिल जाती थी जहाँ बड़ी टी. वी. लगा कर लोगों को क्रिकेट दिखाया जाता था और लोगों की भीड़ लग जाया करती थी।
एक अलग तरह का उत्साह और जूनून होता था। सारे आयोजन देशों के मध्य होते थे और लोग में अपने देश को जिताने का एक अलग जूनून होता था। कोई हवन करता था कोई पूजा पाठ करता था. क्या कभी ऐसा जूनून आई. पी. एल. के मैच के दौरान दिखाई पड़ता है?
पर जबसे आई. पी. एल. अस्तित्व में आया क्रिकेट के रोमांच में बहुत भारी कमी आई है। पैसा कमाना और आयोजन को सफल बनाना एक अलग विषय है परन्तु जूनून की हद पार करके आयोजन सफल होना बिलकुल अलग बात है।
आज देश में बहुत से लोग खाली है उनके लिए बड़े और व्यवस्थित क्रिकेट जैसे आयोजनों में बुलाकर ठगना एक बात है पर जूनून पैदा होना बिलकुल अलग बात है। आई. पी. एल. तुलना एक सर्कस से की जा सकती है। पहले मैच तीन से चार महीनों के अंतर पर और कभी तो यह अंतर बहुत अधिक होता था पर अब जब भी टेलीविज़न खोलो तो ऐसा लगता है की आई पी एल का मैच चल रहा होगा। क्रिकेट से वो बात ही गायब हो गयी। आज आई पी एल के मैच और अंतराष्ट्रीय मैच में एक जैसा ही रोमांच हो गया है। जूनून नाम की चीज तो क्रिकेट में गायब हो गयी है। ऐसी संस्था ने क्रिकेट को बिलकुल बर्बाद कर दिया है जिसमे अपनापन नाम की चीज ख़त्म हो गयी है।
एक समय में क्रिकेटरों का बहुत सम्मान हुआ करता था परन्तु अब ऐसा लग रहा है कि कुछ दिन में क्रिकेटर्स की इज्जत करने वाले मिलेंगे ही नहीं। वो इसलिए कि आज पैसे कमाने की प्रथमिकता ने क्रिकेट खिलाडियों को अंधा कर दिया है। अब जब खुलेआम उनकी बेइज्जती हो रही है तो फिर बचता ही क्या है।
आज जब पता चला कि इशांत शर्मा जैसे बेहतरीन क्रिकेटर्स का कोई खरीदार नहीं मिला। महेन्द्र सिंह धोनी भी कप्तानी से बाहर कर दिए गए तो बहुत आश्चर्य हुआ। ये वो खिलाडी हैं जिनका अंतराष्टीय स्तर पर सम्मान है। उन्हें आई. पी. एल. जैसे आयोजनों में जगह नहीं मिलती तो खिलाडियों की इससे बड़ी बेज्जेती क्या हो सकती है। यदि ये खिलाडी खरीद फरोख्त में शामिल न हुए होते तो अलग बात थी, परन्तु शामिल होने के बाद ये हाल होना शायद यह बाताता है कि जिस प्रकार से हिन्दुस्तानी फिल्मों के अवार्ड्स जो पहले से ही फिक्स होते हैं। हो सकता है खिलाडियों के बिकने में कुछ प्रतिशत फ़्रन्चिएसी के लिए फिक्स होता हो और जो खिलाडी उनको मन मुताबिक कमीसन देने को तैयार हो जाते हों उन्हें ही खरीदा जात हो बाकियों को बाहर। कितनी विचित्र बात है।
ये खिलाडी भी कितने विचित्र हैं जिनको देश हीरो मानता है उनके इस स्तर को देख कर लगता है कि ये भी हर स्तर पर समझौता कर के काम चला रहे हैं। सबसे बड़ी बात कि जो भारत की अन्तराष्ट्रीय संस्था के सम्मानित खिलाडी हैं वो पैसों के लिए इतने ज्यादा ख़राब स्तर तक पहुँच जाते हैं कि उनको अपने स्तर और सम्मान का भी ख्याल नहीं रहता और वो भी एक ऐसी संस्था के लिए जिसका मकसद केवल व्यापारिक है। उस संस्था के लिए ऐसे खिलाडी लाइन लगाये रहते हैं जो न ही अपनी वरिष्ठता का सम्मान करते हैं नहीं अपने अंतररास्ट्रीय स्तर का बस उनका मकसद पैसा कमाना होता है। पैसा कमाना बुरा नहीं है परन्तु ऐसी जगह से नही कि एक और उनका अंतररास्ट्रीय स्तर का सम्मान और दूसरा कि वो केवल पैसा कमाने के मकसद से कहें भी खेलने चले जाएँ। खैर खिलाडियों के मध्य भी अपनी प्रतिस्पर्धा होती है जिसमे पैसा कमाने का स्तर इत्यादि शामिल होगा। यह बात ठीक है कि किसी को भी अहंकार नहीं पालना चाहिए। परन्तु एक गरिमा जरूर बनाये रखनी चाहिए कि जो शक्श भारत का आज तक का सबसे सफलतम कप्तान रहा है उसे आज आई. पी. एल. जैसी संस्था में उसकी टीम ने कप्तानी से हटा दिया।
यदि धोनी ने कप्तानी खुद छोड़ी होती तो यह बात और होती परन्तु जहाँ तक खबर मिल रही है कि उनको कप्तानी से हटा दिया गया।यह एक सोचनीय विषय है। यदि अब भी धोनी इस तरह के आयोजन में खुद शामिल होते हैं तो यह एक विचित्र बात होगी। धोनी खुद व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छे इन्सान हैं वो अपनी पत्नी के नाम पर एक समाज कल्याण संस्था चलाते हैं। आज वो अपनी भारतीय क्रिकेट टीम बतौर खिलाडी खेल रहे हैं यह बहुत सराहनीय है उन्होंने खुद ही अपना कप्तानी पद छोड़ने का फैसला, देश की टीम और उसके भविष्य के लिए किया और आज बतौर खिलाडी वो बहुत अच्छा प्रदर्शन करके देश के गौरव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। जब ऑस्ट्रेलिया टीम के कप्तान रिकी पोंटिंग थे तो वो आई. पी. एल. को बहुत महत्त्व नहीं देते थे। एक बार तो वो अपनी टीम के लगभग सभी सदस्यों को ऑस्ट्रेलिया वापस बुला लिया था क्यूंकि उनको अपने देश की टीम के लिए बेहतर तैयारी करनी थी। वो आई. पी. एल. जैसी संस्थाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं देते पर भारतीय खिलाडी इस संस्था के लिए अपना और अपने देश का स्तर भी भूल जाते हैं।
खैर राजनीति हर जगह व्याप्त है और हर आदमी सफल होने के लिए क्या क्या करता है। हो सकता है यहाँ भी यही चल रहा हो। जैसे कि दंगल फिल्म के अनुसार गीता और बबिता फोगाट का कोच अपने इगो और पद का दुरूपयोग करके देश को गर्त में धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था, वैसे ही आई. पी. एल. और बी. सी. सी. आई. में भी यही चल रहा हो।
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