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पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 90 वर्ष पूरे होने पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने उद्बोधन में कुछ विचित्र बातें कही, उनका जिक्र करना चाहूँगा। इस प्रकार के भाषण से उनकी कुटिल मानसिकता साफ़ झलकती है। यही अंतर है चीन और भारत में। भारत के प्रधानमंत्री कभी भी अपने वक्तव्यों में झूठ, फरेब और गलत बात नहीं बोलते हैं। वहीं, चीन बड़ी बेशर्मी से झूठ-फरेब खुले आम बोलता है।
शी जिनपिंग ने कहा कि चीन विस्तारवादी नीति का हिमायती नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि चीन शांतिप्रिय देश है। यहां की सेना युद्ध के लिए तैयार रहती है और हर युद्ध को जीतने में सक्षम है। ये बातें सुनकर बड़ी हंसी आई। शी जिनपिंग की सेना युद्ध के लिए तैयार तो रहती है, पर युद्ध जीत पाना उसके वश में नहीं है। युद्ध के लिए तैयार रहना अलग बात है और युद्ध जीतना अलग बात।
उन्होंने जापान से अपनी शर्मनाक हार छुपायी कि जापान ने चीन को एक बार धुल चटाई है और दूसरी बार गर्दन दबाते-दबाते छोड़ा है। जहाँ तक चीन की विस्तारवादी निति का प्रश्न है, तो चीन ने हमेशा से ही विस्तारवाद को तवज्जो दी है। इसके लिए उसने हांगकांग पर भी कब्ज़ा किया था, तिब्बत और भारत का भी बहुत बड़ा हिस्सा हड़प रखा है।
अब बात करते हैं उसके शातिप्रिय होने की। चीन हमेशा से ही ‘बेहद शांतिप्रिय’ देश पाकिस्तान का यार बना हुआ है या यूँ कहें कि पाकिस्तान को अपना गुलाम यार बनाया हुआ है। पकिस्तान इतना ‘शांतिप्रिय’ देश है कि उसने ओसामा बिन लादेन को अपने ही घर में छुपाकर रखा था। चीन दुनिया के अन्य सभी देशों द्वारा घोषित आतंकियों को भी आतंकी मानने से इनकार कर देता है। वह इसलिए कि उसका ‘जिगरी गुलाम’ पकिस्तान खुश रह सके।
फिलहाल चीन के राष्ट्रपति के भाषण को सुनकर ऐसा लगा कि वे अब अपनी हैसियत समझ चुके हैं कि भारत से टकराव उनके लिए ठीक नहीं होगा। यदि अभी भी उनके मन में कोई गिला-शिकवा है, तो वे भी आगे आने वाले समय में भारत द्वारा दूर कर दिया जाएगा।
भारत की आर्मी के पराक्रम को वे और दुनिया के अन्य देश भी अच्छी तरह जानते हैं। भारतीय आर्मी ने अत्यंत दुर्गम युद्ध को भी जीता है, जिसका गवाह कारगिल विजय है। दुनिया की किसी भी सेना ने ऐसे दुर्गम क्षेत्र का युद्ध नहीं लड़ा है। जहाँ तक भारत-चीन युद्ध का प्रश्न है, तो वह एक ऐसा युद्ध था, जब भारत युद्ध के बारे में सोच भी नहीं सकता था।
भारत शांति के सहारे दुनिया से भी यही अपेक्षा करता था कि जब भारत किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, तो अन्य कोई उसको क्ययों नुकसान पहुंचाने की सोचेगा। इसी गलतफहमी में भारत जी रहा था। शायद वह अपने कुटिल पड़ोसियों को भी अपना हितैषी समझ बैठा था। इस बात का फ़ायदा उठाकर, मौका देखकर चीन ने सन 1962 में भारत के एक ऐसे इलाके पर हमला किया, जहाँ भारतीय सेना का पहुंचना एक तरह से नामुमकिन था और सेना इसके लिए तैयार भी नहीं थी। अतः यह युद्ध नहीं एक तरह का हमला था।
चीन के इस कुकृत्य से भारत ने सीख लेते हुए अपनी युद्ध की तैयारियों को तेज किया और उसके कुछ ही वर्षों (तीन वर्ष बाद ही) बाद सन 1965 में पकिस्तान से युद्ध में पकिस्तानी सेना को धूल चटाई. आज यदि चीन या पकिस्तान से युद्ध की नौबत आती है, तो भारतीय सेना हर मोर्चे पर न सिर्फ उपलब्ध है, बल्कि सभी युद्धक साजो-सामान से लैस भी है। भारतीय सेना को यदि युद्ध के सभी साजो-सामान उपलब्ध हों, तो इसकी पराक्रम की तुलना दुनिया के किसी भी सेना से नहीं की जा सकती।
जहाँ तक चीन और पाकिस्तान का सवाल है, तो इन दोनों देशों की सेनायें कई बार युद्ध में पराजय झेल चुकी हैं। अतः भारतीय सेना का इन दोनों राष्ट्रों की सेनाओं से तुलना बेहद बकवास है। अब चीन अपनी पुरानी सोच से जितने जल्दी बाहर निकलेगा, उतना ही उसकी सेहत के लिए फायदेमंद होगा।
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