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कल और आज तेजस्वी यादव के विचार सुनने का अवसर मिला। वे बार-बार यह बात कह रहे थे कि नीतीश कुमार को बस सत्ता चाहिए, उनका कोई इमान और उसूल नहीं है. कल जो नीतीश बीजेपी को गलियां दे रहे थे, आज वो उन्हीं के साथ हैं। वो कह रहे थे कि वो और उनकी पार्टी स्वाभिमानी पार्टी है, उनकी पार्टी ने अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया, इसलिए उन्होंने इस्तीफ़ा नहीं दिया। वो बार बार आरएसएस को नाथूराम गोडसे का संगठन बता रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पिता लालू यादव ने संकट में उनकी मदद की और उन सभी का एक मात्र उद्देश्य यह था कि किसी प्रकार मोदी और बीजेपी से देश को बचाया जाय। तेजस्वी यादव का यह भी कहना था कि वो अपने पिता के कार्यों को आगे बढ़ायेंगे। मुझे भी पूरी उम्मीद है कि वो अपने पिता के कर्मों से बढ़कर बड़े-बड़े कारनामे करेंगे।
जहाँ तक नीतीश कुमार के इमान और उसूलों का प्रश्न है, तो तेजस्वी यादव यह बतायेंगे कि लालू और नीतीश कुमार का इस महागठबंधन से पहले छत्तीस का आंकड़ा था। फिर सभी गिले-शिकवे भुलाकर कैसे ये दोनों इकट्ठा हो गए. नीतीश कुमार ने बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को तो कम ही कोसा था पर उनको महागठबंधन से पहले के नीतीश कुमार के विचार और उनकी भाषा लालू के बारे में जरूर सुननी चाहिए। महागठबंधन बनाने के बाद दोनों कट्टर दुश्मन एक हो गए थे। तब उनकी पार्टी, उनके पिता और तेजस्वी यादव का स्वाभिमान कहाँ चला गया था ? दोनों कट्टर दुश्मन एक-दूसरे के प्रति इतना जहर उगलते थे, शायद तेजस्वी को यह बात पता नहीं है। यदि पता है और वो बोल नहीं रहे हैं, तो फिर यह उनकी बुद्धि पर संदेह करने वाली स्थिति है कि वो अभी भी बिहार को अपने पिता की जागीर समझकर जो मन में आये बोल रहे हैं।
वहीँ लालू प्रसाद के तो कहने ही क्या हैं ? लालू इस बात से प्रसन्न हैं कि उनका बेटा रजनीति में आगे बढ़ रहा है। लालू कह रहे हैं कि “I am a lucky man” कि तेजस्वी को राजनीति में बिना कुछ विशेष सिखाये वह आगे बढ़ रहा है और राजनीति में स्थापित हो रहा है। वाह रे परिवारवादी राजनीति, इनको अपने पुत्र को राजनीति में स्थापित करने की एक मात्र चिंता थी। जबकि इनकी चिंता बिहार के सभी पुत्रों और पुत्रियों के लिए सामान रूप से होनी चाहिए। लालू यादव ने नीतीश कुमार पर यहाँ तक आरोप लगाया कि नीतीश ने सर्जिकल स्ट्राइक का सपोर्ट किया। यह भी लालू के द्वारा एक बहुत बड़ा खुलासा है कि वो अल्पसंख्यकों के हितों के लिए बीजेपी का विरोध करते हैं, परन्तु सच तो कुछ और है।
लालू ने ऐसा तांडव मचाया था कि इनसे जब कोई कहता था कि लालू जी गंगा नदी पर एक बांध बनवा दीजिये, गंगा का पानी घरों में घुस आता है। तब पुल बनवाना तो दूर लालू प्रसाद यह कहकर पल्ला झाड़ लेते थे कि तुम लोग किस्मत वाले हो कि गंगा जी तुम्हारे रसोई तक स्वयं आती हैं। जब कुछ लोगों ने कहा कि गंगा पर पुल बनवा दीजिये और गाँव को सड़क से जोड़ दीजिये, तो लालू प्रसाद का कहना होता था कि इतने गलत काम करते हो, अगर पुलिस पकड़ने आएगी, तो सीधे घर पर गाड़ी से जल्दी ही पहुँच जायेगी, फिर भागने का मौका भी नहीं पाओगे। आज पुल और सड़क के न होने से पुलिस तुम्हारे गाँव तक नहीं पहुँच पाती। लालू प्रसाद ऐसी दलीलों के सहारे पूरे बिहार में राज किये और खुद तो गंगा के पानी को अपनी रसोई से दूर रखे। खुद के लिए बड़ी-बड़ी गाड़ी, बड़े-बड़े बंगले और महल बनवा लिए, पर बिहार के लोगों को गुमराह करके उन्हें वहीँ का वहीँ बनाये रखा, जिससे कि वे लोग केवल एक वोट बैंक से ज्यादा कुछ न बन सकें।
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