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खुद पर करें भरोसा @ वैज्ञानिक तथ्य

Hindustani
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करें भरोसा @ वैज्ञानिक तथ्य

………..इन दोनों वैज्ञानिक तथ्यों को यदि देखें तो यह पायेंगे कि हम सभी की उत्त्पति एक ही माँ बाप से हुई है और सभी व्यक्तियों को दिमाग भी बराबर ही है……..

इस लेख को पढने वाले और लेखक सभी मूल रूप से अफ्रीका के हैं। अर्थात पृथ्वी के सभी मनुष्यों की उत्पत्ति अफ्रीका की है। बहुत सारे लोगों को यह आश्चर्य की बात लगेगी परन्तु यह सच है की पहला मानव (Modern human) पूर्वी अफ्रीका में उत्पन्न हुआ था। वहीं से मानव जाति पूरी दुनिया में फ़ैल गयी। जब विज्ञान बहुत विकसित नहीं था तब हम यह बात अपने धर्म ग्रंथों के माध्यम से  जानते थे कि पृथ्वी पर सभी मनुष्य एक ही माँ बाप की संतान हैं। हिन्दू धर्म में मनु और शतरूपा का जिक्र मिलता है, इसाई धर्मं में आदम और ईव तथा अलग अलग धर्मों में यह अलग अलग नामों से उद्द्धृत किया गया है। परंतु अब यह तथ्य विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि पहला इन्सान पूर्वी अफ्रीका में उत्त्पन्न हुआ और वहीँ से पूरी दुनिया में फ़ैल गया।

सभ्यता के शुरुआत में मनुष्य खाने के लिए घुम्मक्कड़ी जीवन व्यतीत करता था परन्तु जैसे जैसे कृषि का विकास हुआ मनुष्य ने स्थाई बस्तिया बसानी शुरू की। बस्तियां कबीलों के रूप में स्थापित हुई। विभिन्न रिश्ते और विभिन्न तरह की परम्पराएं स्थापित हुई। कबीले में जैसे जैसे सामाजिक संरचना जटिल होती चली गयी वैसे वैसे कुछ मान्यताएं भी स्थापित होनी शुरू हुई। धनवान, निर्धन, जातिओं का तथा वर्णों का विभाजन होता चला गया। यह केवल किसी एक देश में नहीं हुआ परन्तु यह संरचना पूरे विश्व में थी। बाद में इन मन्यताओं में कुछ पन्थो को जन्म दिया। कुछ महान हस्तियों ने भी जन्म लिया और उनके द्वारा या तो धर्म का निर्माण किया गया या उनके दिखाए अथवा बताये मार्ग को लोगों ने धर्म का रूप दे दिया। आगे चलकर कुछ लोगों ने पहले से स्थापित धर्म से हटकर अपनी अलग मान्यता के अनुसार दुसरे धर्मो का निर्माण किया। परिस्थिओं के अनुसार विभिन्न प्रकार के धर्म एवं पंथों का निर्माण हुआ।

आज चुकि मानव सभ्यता एक बहुत विकसित रूप ले चुकि है और मनुष्य की सामजिक संरचना में बहुत जटिलता आ गयी है। मुख्यतः धर्म, जाति और रंग आधारित भेदभाव बहुत व्यापक और ज्यादा पनप चूका है, इनकी जडें समाज में काफी गहरी हैं। इस भेदभाव से निजात पाने में इस लेख में दिए हुए तथ्य बहुत कारगर साबित हो सकते हैं।

दो प्रकार के वैज्ञानिक तथ्यों से इसकी व्याख्या कर सकते हैं। पहला तथ्य यह है सभी मनुष्य अफ्रीका में ही उत्पन्न हुआ और वही से पूरी दुनिया में फैला। तात्पर्य यह है कि सभी लोगों की उत्पत्ति एक ही माँ बाप से है।

दूसरा तथ्य यह कि इश्वर ने सभी व्यक्तियों को दिमाग बराबर दिए है (ग्रे मैटर और वाइट मैटर बराबर मात्र में हैं)। दिमाग के दो भाग मस्तिष्क और मेरुरज्जु (Brain and its parts Spinal card) में दो तरह के मेटर होते है एक को ग्रे मैटर और दुसरे को वाइट मैटर कहते है। दिमाग के मुख्य भाग जिसे तंत्रिका तंत्र कहते हैं वो ग्रे मैटर और वाइट मैटर में समाहित होते हैं। ये ही दिमाग की छमता का निर्धारण करते है। ये दोनों मैटर सभी मनुष्यों के दिमाग में बराबर पाए जाते हैं चाहे वह किसी धर्म का हो, किसी भी जाति का हो, किसी देश का अथवा किसी भी उत्त्पति का हो।

यदि इन दोनों वैज्ञानिक तथ्यों को यदि देखें तो यह पायेंगे कि हम सभी की उत्त्पति एक ही माँ बाप से हुई है और सभी व्यक्तियों को दिमाग भी बराबर ही है।

अतः यह बात साबित होती है कि कोई भी हो चाहे वह गोरा हो काला हो, नाटा हो या लम्बा हो, अफ्रीका का हो, एशिया का हो, यूरोप का हो, ऑस्ट्रेलिया का हो अथवा कही और का, किसी भी धर्म का हो, वंश का हो किसी जाति का हो अथवा किसी भी वर्ग का हो अथवा किसी देश का या को अन्य कही और का। हम सभी में सामान छमता है। हमारे पास बुद्धि की मात्रा भी बराबर है। परन्तु जहाँ तक विवेक, व्यक्तित्व और चरित्र का प्रश्न है इसमें हर व्यक्ति के स्तर पर फर्क होता है।हमारा विवेक, व्यक्तित्व और चरित्र हमारे बाहरी वातावरण और परिस्थितियों से निधारित होता है।इस वातावरण के अंतर्गत हमारे पढाई लिखाई, घर का माहौल, दोस्त, पडोसी, शिक्षक, इत्यादि आते हैं। परन्तु जन्म के समय  हम सभी मनुष्य एक जैसे ही हैं। विवेक, व्यक्तित्व और चरित्र में यदि सकारात्मक बदलाव लाना है तो हम अपने ज्ञान में वृद्धि करें और अच्छे लोगों की संगति करें जिससे हमारी मान्यताएं और व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव आये।

आज मानव सभ्यता में विकास के साथ बहुत जटिलता है, जिसमे प्रमुख रूप से धर्म, जाति, गोरे काले में ज्यादा फर्क करके आपस में श्रेष्ठता को साबित करने की प्रतिस्पर्धा (competition) बनी रहती हैं। एक पछ अपने को दुसरे पछ से श्रेष्ठ साबित करने में लगा रहता है।

परन्तु यदि सभी लोग इस ऊपर चर्चा किये गए तथ्य को भली भांति समझ जायें (जो कि कोई काल्पनिक मान्यता न होकर वैज्ञानिक तथ्य है) तो शायद सभी लोग “वसुधैव कुटुम्बकम” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” को आत्मसाध करके भाईचारे के साथ सुन्दर जीवन व्यतीत कर पाएं।

ज्यादातर लोग अपने परिवार या वंश के अतीत के कुछ उदाहरण लेकर गर्व महसूस करते है। यदि हमारा अतीत यदि गौरव वाला होता है तो हमें उत्त्साह मिलता है, यह बात ठीक है। परन्तु यदि अतीत में कोई ऐसा उदाहरण हमें ज्ञात न हो तो हमें यह बात अच्छी तरह समझना चाहिए की पृथ्वी पर उपस्थित हम सभी लोग आपस में एक की परिवार के सदस्य है, हमारी उत्पत्ति और वंश एक ही है। अतः किसी को अपने आप को दुसरे से महान नहीं समझना चाहिए इसी प्रकार किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्ति से अपने को नीचा भी नहीं समझना चाहिए।

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