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चीन को यह लगता है कि वो भारत को गीदड़ भभकी दिखाकर अपना वर्चस्वग कायम रख पाएगा, किसी भी पड़ोसी देश को उससे आगे बढ़ने नहीं देगा और इस तरह वह एशिया का दादा बनेगा। वह दक्षिण चीन सागर में अपना दबदबा कायम रखने के लिए कुछ द्वीपों पर गैरकानूनी तौर से कब्ज़ा जमा चुका है। आगे भी उसकी यही मंशा है कि अन्य द्वीपों पर भी वो कब्ज़ा जमाये। इस प्रकार उसे न तो अन्तराष्ट्रीय कानून की फ़िक्र है, न ही यूनाइटेड नेशन की और न अपने वीटो पावर की। चीन की विस्तारवादी नीति अभी भी कायम है, जिससे यह साबित होता है कि चीन अपनी विचारधारा में परिवर्तन नहीं कर पाया है और वह अपने उन्हीं उसूलों पर आगे बढ़ना चाहता है।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है, तो चीन यह बात अच्छी तरह जानता है कि भारत से टकराने का अर्थ है कि वो खुद भी बर्बाद हो जाएगा। इस मुद्दे पर जहाँ तक भारत का सवाल है, तो भारत युद्ध बिलकुल भी नहीं चाहता, पर एक बात जरूर है कि चीन के साथ युद्ध हर भारतीय की एक महान इच्छाओं में से एक है। भारत का लगभग हर नागरिक चीन को एक बार युद्ध में बुरी तरह परास्त जरूर करना चाहता है। देश में 1962 का बदला लेने की कसक हर ओर है। सभी चाहते हैं कि चीन को न सिर्फ शिकस्ता दी जाय, बल्कि भारत की जबरन कब्जा की गयी जमीन भी वापस भारत में मिला ली जाय।
चीन एक बहुत घटिया मानसिकता वाला देश है, जिसने मौका पाते ही संसाधनविहीन भारत पर कब्ज़ा करने के इरादे से अचानक हमला कर दिया था और भारत की बहुत सारी जमीन पर अपना कब्ज़ा स्थापित कर लिया। चीन को यदि अपने अस्तित्व को बचाए रखना है, तो उसे भारत के अन्दर की इस ज्वलंत आग से बचना ही होगा। यदि अब वह युद्ध चुनता है, तो उसका हाल ‘बाहुबली’ फिल्म के कालिकेय जैसा ही होगा, जिसके पास माहिष्मउती से चार गुना अधिक सेना जरूर थी, पर उसकी नीयत बेहद घृणित और नीच किस्म की थी। वहीं, दूसरी ओर पराक्रम माहिष्मती के राजकुमार बाहुबली और उसकी सेना में था, जिससे कालिकेय का दुखद अंत हुआ।
आज लगभग सारे अल्पज्ञानी लोग चीन की फ़ौज की संख्या की दुहाई देते हैं कि उसके पास सेना ज्यादा है, उसके पास जनसंख्या अधिक है और उसका भू-भाग भी बहुत बड़ा है, वगैरह वगैरह। परन्तु उसके साहस की बात कोई नहीं करता। दरअसल, चीन के पास संख्या बल ही है, इसके अलावा उसकी सेना और वहां के लोगों में साहस और पराक्रम नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि उसकी नीयत में हमेशा ही खोट रहता है, नहीं तो आज वह अपने संसाधनों से एक विकसित राष्ट्र के रूप में दुनिया में जाना जाता।
चीन के इतिहास का जिक्र करना ज्याकदातर लोग पसंद नहीं करते हैं, उन्हें तो इस देश की झूठी तारीफ में आनंद आता है। उसका इतिहास यह है कि वह जापान से अपने प्रथम युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ। उसे अपने स्वामित्वप वाले राज्य और भू-भाग को छोड़ना पड़ा और जापान के आगे नतमस्तक होना पड़ा। चीन और जापान की दूसरी लड़ाई में भी चीन परास्त ही हो रहा था और अपना बहुत कुछ खो भी चुका था, परन्तु अमेरिका के परमाणु हमले की वजह से इस बार उसकी जान बच गयी, नहीं तो उसकी दशा और भी ख़राब हो जाती। चीन और जापान के बीच दूसरे युद्ध में चीन का साथ अमेरिका और रूस दोनों दे रहे थे, तब भी चीन की बर्बादी हो चुकी थी।
ऐसा नहीं था कि तब चीन के पास जापान की तुलना में भू-भाग की कमी थी, जनसँख्या की कमी थी या फिर आर्मी (आर्म्डम फोर्सेज) की कमी थी। उसके पास तब भी जापान की तुलना में भू-भाग, जनसँख्या और सेना सभी कुछ बहुत ज्यातदा था। अतः गुमराह करने वालों और दिवा स्वप्न देखने वालों को मेरी एक मुफ्त की सलाह है कि वे अपना ज्ञान वर्धन करें और युद्ध के मामले में भारत से चीन की तुलना करना बंद कर दें।
आज चीन, अमेरिका के हाँ में हाँ मिलाकर उत्तर कोरिया पर कार्यवाही करने की बात तो कर आया पर उसकी इतनी भी ताकत नहीं कि वह उत्तर कोरिया से कोई बात भी करे। अन्य वजह चाहे जो भी हो पर एक वजह साफ़ है कि वो युद्ध में या किसी बाहरी झमेले में पड़ना नहीं चाहता। पर यह बड़ी विचित्र बात है कि वह भारत को आँख दिखाने की गुस्ताखी कर रहा है। उसे यह मालूम होना चाहिए कि भारतीय फ़ौज दुनिया के खतरनाक लड़ाकों में गिनी जाती है।
पिछले कुछ वर्षों से चीन में आर्थिक विकास तेज हुआ है, लेकिन चूंकि चीन की नीयत में खोट भरी है, अतः एक बात मैं पूरे विश्वाचस के साथ कह सकता हूँ कि उसकी आर्थिक विकास की यात्रा ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं है। एक और कटु सत्य जो यहाँ के सामान्य नागरिकों को पता नहीं है, वह यह है कि चीन द्वारा पेश किये जाने वाले किसी भी दावे को दुनिया के कोई भी होशियार और विकसित देश नहीं मानते। इसकी वजह यह है कि उसके यहाँ सभी आंकड़े केवल उसकी सरकार द्वारा पेश किये जाते हैं और वहां की तानाशाही सरकार अपने हिसाब से सभी आंकड़े बनती है और प्रस्तुत करती है। उसके सभी आंकड़े विचित्र ही होते हैं और सच्चाई से परे प्रतीत होते हैं। इसलिए उसकी सेना, उसके हथियार, उसकी सैन्य ताकत के विषय में उपस्थित आंकड़ों में दिखावा ज्यादा है, सच्चाई कुछ और ही है।
चीन अपने देश में विकास की गति को आगे बढ़ाना जारी रख रहा है। इससे यह बात साबित होता है कि वह भी युद्ध जैसे खतरे में स्वयं को नहीं डालेगा। अतः उसका यह धमकी देने वाला काम एक ड्रामा ही नजर आता है। पर उसको इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि यदि अब वह यह समझता है कि वो भारत को डरा देगा, तो यह उसकी गलतफहमी है। भारत के लोगों की इच्छा के अनुरूप यदि वो युद्ध को चुनता है, तो फिर उसका क्या होगा यह उसे अच्छी तरह पता है।
भारत के प्रधानमंत्री ने यह बात साफ़ कर दी है कि भारत चीन द्वारा बनाई जा रही सड़क में किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं अदा करेगा और उसके द्वारा बनाई जा रही सड़क को अपने देश की सीमा से गुजरने नहीं देगा। चीन को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पाकिस्तान की तरह भारत भी उसके आगे नतमस्तक हो जाएगा। पाकिस्तान की दशा तो बेहद दयनीय है, जिस तरह भारत में उपस्थित पाकिस्तान परस्त लोगों का कोई जमीर नहीं है, उसी तरह पाकिस्तान भी दूसरे देशों द्वारा दी जा रही भीख और उनके रहमो-करम पर ही जीवित है। उसे अमेरिका और चीन यदि भीख न दें, तो वह भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगा।
पकिस्तान का हाल वही है जैसे उसके जिहादी आतंकवादी अपने शरीर पर बम बांधकर कहीं भी कूद जाते हैं और खुद तो मरते हैं, दूसरों को भी मार देते हैं। उसी प्रकार पाकिस्तान परमाणु बम लेकर घूम रहा है कि हम तो मर जायेंगे पर दूसरे को भी नुकसान जरूर पहुंचा देंगे। परन्तु आज भारत ऐसे आतंकियों और घटिया मानसिकता वाले चीन को भी अच्छी तरह से कुचलने ने समर्थ है। चीन का एक मात्र उद्देश्य यह है कि वह भारत को नुकसान पहुंचाए, जिसके लिए वह पाकिस्तान को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है। पाकिस्तान और चीन में यह अंतर है कि पाकिस्तान एक विफल देश है, जो अपने तन पर परमाणु बम बाँधकर मरने को तैयार बैठा है। वहीं, चीन ने अभी तक आर्थिक विकास के रास्ते को पकड़कर रखा है। इस कारण चीन स्वतः युद्ध नहीं चाहेगा उसकी गीदड़भभकी जारी रहेगी और भारत उसकी हरकतों को भलीभांति नियंत्रित रखने के साथ-साथ ठिकाने भी लगाता रहेगा।
वहीँ भारत के अंदर मौजूद तत्वों को क्या कहा जाय? भारत में सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के मुखिया चीन के राजदूत से मिलने पहुंचे, वो भी शायद यह बताने कि वे भारत के खिलाफ चीन के साथ हैं, बस उन्हें कैसे भी भारत की सत्ता पर बैठा दो। वो चीनी राजदूत से मिलकर यह बता आये कि भारत में अब हिन्दू राष्ट्रवाद उभर रहा है और वह एक बहुत बड़ा खतरा चीन के लिए व कांग्रेस जैसी मानसिकता वाली पार्टियों के लिए बन रहा है। जिस प्रकार से कांग्रेस ने अपने एक राजनेता को पाकिस्तान में दूत के रूप में भेजकर वहां की सरकार से भारत में कांग्रेस की सरकार बनवाने की भीख मांगी जिससे पाकिस्तान के लिए भारत में मार्ग प्रशस्तभ हो, इसमें सहयोग की अपील कर आये. उसी प्रकार तुरन्तक ही मौका पाकर राहुल गाँधी अब चीन के राजदूत से मिल आये।
शायद यह लोग भारत को अस्थिर करने का पूरा प्रयत्न करते रहे हैं। बाहरी तत्वों को भी भारत पर हमला करने के लिए ये लोग ही निमंत्रण दे आते हैं। बहुत सारे नेता तो अपना राजपाट विदेशों में स्थापित कर चुके हैं। अतः भारत उनके लिए मात्र एक उपनिवेश के रूप में है, जिससे उनको धन की निर्बाध आपूर्ति होती रहती है। इनका भारत और भारतवासिओं से कोई लेना-देना नहीं है। जो लोग इनको फ़ायदा पंहुचा सकते हैं, उनके आगे ये लोग कुछ रोटी फेंक देते हैं, जिससे इनके पालतू जानवर भी खुश और ये यहाँ से धन लेकर जा ही रहे हैं।
जहाँ तक भारत में हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रश्न है, तो राष्ट्रवाद आज से ही नहीं, बल्कि हमेशा से दुनिया के सभी देशों के लोगों में स्वतः ही मौजूद है। आज राष्ट्रवाद के चलते ही चीन अपने देश में फेसबुक को बैन किये हुए है, जिससे कि उसके स्वयं के देश में निर्मित सोशल साइट्स का ही इस्तेमाल हो। इंग्लैंड के लोगों ने जनमत से अपने आपको यूरोपीय संघ से अलग कर लिया, जिसका मुख्य आधार ही अपने राष्ट्र के हितों की रक्षा करना था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सर्वप्रथम अमेरिकी नागरिकों को ही नौकरी देने के लिए सभी कंपनियों को बाध्य कर दिया है, जिससे अमेरिका के लोग वहीँ पर नौकरी पा सकें और अन्य देशों के लोग वहां के लोगों का हक़ न छीनें। उन्होंने वीजा के नियमों को भी इसी कारण से बदला, जिससे कि उनके राष्ट्र के लोगों के हितों की रक्षा की जा सके।
यह सभी राष्ट्रवाद का ही ज्वलंत और समसामयिक उदाहरण है। पर यदि भारत में किसी ने स्वदेशी की बात की, तो तथाकथित बुद्धिजीवी स्वदेशी शब्द को हिन्दू राष्ट्रवाद, असहिष्णुता, हिन्दू कट्टरपंथ और हिन्दू आतंकवाद या आरएसएस का आदमी तक बता देते हैं। आज भारत में रहने वालों को जितनी आजादी अपने ही देश के खिलाफ बोलने के लिए है, ऐसी स्वतंत्रता किसी भी अन्य देश में बिलकुल नहीं है और चीन में तो बिलकुल भी नहीं। चीन का कोई भी व्यक्ति चीन के खिलाफ एक बात भी नहीं बोल सकता पर भारत में भारत और भारत की संस्कृति के लिए अभद्र भाषा बोलने वाला ही असली बुद्धिजीवी घोषित कर दिया जाता है।
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