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दिल्ली में नई विधानसभा के गठन के लिए मतदान हो जाने के बाद कांग्रेस और ऐन चुनाव से पहले इसके नेता बनाए गए अजय माकन के सियासी भविष्य को लेकर कयासों का सिलसिला शुरू हो गया है। आगामी मंगलवार को आ रहे चुनाव परिणाम के बाद यह तय होगा कि कांग्रेस किस प्रकार नई चुनौतियों के बीच अपनी राह तलाशेगी। यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा कि अब माकन दिल्ली की सियासत करेंगे या केंद्र की राजनीति में ज्यादा मन लगाएंगे।
देश के बाकी हिस्सों में जिस प्रकार क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की लुटिया डुबो डाली, कुछ उसी प्रकार की हालत दिल्ली में भी खड़ी हो गई है। यदि आम आदमी पार्टी (आप) इस बार अपने दम पर सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो यहां कांग्रेस की हालत बिहार और उत्तर प्रदेश सरीखी हो जाएगी। इन प्रदेशों में भी पहले कांग्रेस का शासन था, लेकिन अब पार्टी तीसरे-चौथे स्थान पर सिमट गई है।
सियासी जानकारों का कहना है कि दिल्ली में जो लोग भाजपा और कांग्रेस दोनों को वोट नहीं डालने चाहते, उन्हें एक विकल्प के तौर पर आप मिल गई है। कांग्रेस के लिए दिक्कत यह है कि आप की ओर जाने वाले ज्यादा समर्थक उसके हैं। इसी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस के वोट काटे और पूरी संभावना है कि इस चुनाव में भी आप अब तक कांग्रेस के वोट बैंक रहे मतों को लेकर एक बड़ी ताकत बन कर उभर सकती है। यदि वह सरकार बनाने में कामयाब हो गई तो कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में भारी परेशानी होने वाली है। यदि सरकार भाजपा की बनी तो कांग्रेस आने वाले दिनों में बेहतरी की उम्मीद कर सकती है।
कांग्रेस हाईकमान ने ऐन चुनाव से पहले अजय माकन को दिल्ली की जिम्मेदारी सौंपी। यह माकन को भी मालूम है और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी कि हालात अच्छे नहीं हैं, लेकिन माकन पर जिम्मेदारी महत्वपूर्ण जरूर थी। इसके बावजूद सूबे के कांग्रेसी हलकों में चर्चा यह हो रही है कि डॉक्टर कितना भी अनुभवी क्यों न हो लेकिन एक ही खुराक में बीमार मरीज को दौड़ा देना आसान नहीं होता। लिहाजा, माकन ने अपनी ओर से प्रयास कम नहीं किए हैं। उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली की ओर से पूरा सहयोग भी मिला लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि पार्टी के पक्ष में माहौल अभी पूरी तरह बना नहीं है। बहरहाल, इस चुनाव परिणाम से कांग्रेस और माकन के भविष्य का प्रभावित होना तय है।
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