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राजनीति के मूल मंत्र को समझाते कुछ चेहरे

बिहार चुनाव 2010
बिहार चुनाव 2010
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बिहार में राजनीति के संदर्भ में लोग कहते हैं कि यहां बच्चा राजनीति अपनी मां के पेट से ही सीख कर आता है. जहां लोगों को राजनीति की इतनी समझ हो वहां राजनीति का कोई दांवपेंच छूट जाए ऐसा होना तो बहुत मुश्किल है न. जी अब बिहार के साथ भी यही है. बिहार के नेता अपनी किस्मत चमकाने के लिए राजनीति के सभी मूल मंत्र अपना रहे हैं. राजनीति का सबसे बड़ा मंत्र होता है कि यहां कोई हमेशा के लिए दोस्त या दुश्मन नहीं होता और इसी मंत्र को चरितार्थ करते हुए जहां लालू और पासवान में समझौता हुआ वहीं कभी एक-दूसरे के खून के प्यासे पप्पू यादव और आनंद मोहन की दुश्मनी को ताक पर रख उनकी पत्नियां कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.


pappu yadav बिहार की राजनीति में दबंगई काफी पुरानी और प्रभावी है. पप्पू यादव और आनंद मोहन कभी बिहार के कट्टर बाहुबली थे. दोनों पर कई कानूनी मुकदमें भी दर्ज हैं लेकिन अपने ताकत और पैसे के बल पर उन्होंने अपनी पत्नियों को इस दंगल में उतार दिया. फिर पत्नियों ने भी पतियों की तरह ही राजनीति में सफलता दर सफलता पाई. और आज दोनों कट्टर बाहुबलियों की पत्नियां यानि पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन और आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद एक ही पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ रही हैं. हालांकि दोनों पहले भी लोक सभा सदस्य रह चुकी हैं.


सबसे पहले बात करते हैं आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद की. लवली आनंद की छवि बिहार में किसी बाहुबली नेता से कम कतई नहीं है और यह बात उनके आपराधिक गतिविधियों से मालूम हो जाती है. अब तक पांच केसों में कोर्ट के चक्कर लगाने वाली लवली आनंद को 2008 में ही बिहार के एक आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया मर्डर केस में कोर्ट ने राहत जरुर दी थी लेकिन जनता ने उस केस में उनकी भूमिका को संदेह की नजर से देखा था. लोक सभा की सदस्य रह चुकी  लवली आनंद ने रांची यूनिवर्सिटी से बी.ए. किया है. पर कहते हैं न पैसा और पावर के साथ पॉलीटिक्स का मिक्सचर सारी पढ़ाई भुला देता है सो यहां भी कुछ ऐसा ही दिखाई पड़ता है.


बिहार में बाहुबलियों में सबसे लोकप्रिय बाहुबली पप्पू यादव माने जाते हैं लेकिन जब से वह लालू से अलग हुए तब से उनका और हवालात का शरीर और परछाई जैसा रिश्ता हो गया है. और ऐसे समय पर उन्होंने भी अपनी कमान अपनी श्रीमती के हाथों में दे दी है. रंजीत रंजन ने बिहार के बिहारीगंज से कांग्रेस की टिकट पर पर्चा भरा है. 12वीं पास रंजीत भी लोकसभा सदस्य रह चुकी हैं. लेकिन उन पर हमेशा से ही अपने पति की तरह दल-बदलू होने का आरोप लगता रहा है.


पैसे और पावर के बीच राजनीति को किस तरह चलना होता है उसकी क्लास बिहार से अच्छी और कहीं नहीं सीखी जा सकती है. पप्पू यादव और आनंद मोहन से भी पहले बिहार में लालू ने अपनी आठवीं पास बीवी को कुर्सी पर बिठा कर दिखा दिया था कि राजनीति में अगर पैसा और पावर है तो जीत आपकी तरफ ही झुकेगी.


लेकिन इन सब में कांग्रेस की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. बिहार में कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके नाम पर वह वोट इकठ्ठा कर सके और शायद इसी वजह से इस बार कांग्रेस ने कई बाहुबलियों को टिकट थमा दिया है.

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