Menu
blogid : 3445 postid : 138

वजीर ए आजम की जंग में भारी है स्वार्थ का मुद्दा

बिहार चुनाव 2010
बिहार चुनाव 2010
  • 46 Posts
  • 57 Comments

बिहार भारत के उन राज्यों में से है जहां संसाधन की कमी नहीं है लेकिन नेतृत्व की कमी और सरकारी निकम्मेपन से उसे एक पिछड़े राज्य के रुप में देखा जाने लगा है. लालू और राबड़ी ने मिलकर 15 साल तक बिहार पर राज किया. एक ऐसा राज जिसमें जनता बुरी तरह शोषित हुई ऐसा हम नहीं खुद वहां की जनता कहती है. लालू राज में बिहार में सबसे ज्यादा बाहुबलियों को बल मिला. देखते ही देखते बिहार बाहुबलियों के अधीन लगने लगी. 2005 में नीतीश के नेतृत्व में सरकार बनी तो लोगों ने चैन की सांस ली. जैसे-तैसे बिहार की गाड़ी आगे बढ़ी. धीमा ही सही लेकिन कुछ सुधार हुआ.


 bihar elections 2010वैसे अगर बिहार में अहम राजनीतिक मुद्दों की बात की जाए तो जातिवाद बहुत ही हावी है. हर पार्टी एक खास जाति को साथ लेकर चलती है और ज्यादातर मामलों में उसी जाति को सहयोग देती नजर आती है. ऐसा यहां एक पार्टी नहीं बल्कि सभी पार्टियां करती हैं. लालू जहां यादवों के हितों को ही महत्व देते हैं तो नीतीश गरीबों को सपोर्ट करते हैं और ऐसे में समाज का एक अहम वर्ग यानी आम जनता सुविधाओं से वंचित नजर आती है. वोटबैंक की खातिर हर क्षेत्र से टिकट देते समय पार्टी जाति का अहम ध्यान रखती है. भारतीय संविधान कहता है कि हम जातिवाद से परे हैं लेकिन बिहार की राजनीति देखते हुए लगता है यहां बिना जाति के राजनीति हो ही नहीं सकती.


क्षेत्रवाद और जातिवाद में फंसी राजनीति की वजह से क्षेत्र में विकास की रफ्तार बेहद धीमी पड़ती नजर आ रही है. बिहार में अधिकतर गांव हैं और उन्हीं की स्थिति बेहद चिंताजनक है. गांवों का विकास न लालू राज में था न ही आज नीतीश के राज में है. आज भी गांवों में लोग स्कूल, पानी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए सरकार की तरफ आंख लगाए हुए हैं. न जाने कब इन लोगों का इंतजार खत्म होगा. वैसे इस चुनावों में एक और मुद्दा उठा जो थोड़ा अटपटा लेकिन जनता के मतलब का लगता है. सहरसा विधानसभा क्षेत्र में बंदर चुनावी मुद्दा बने हैं. सहरसा विधानसभा क्षेत्र के करीब 15-20 गांव के लोग बंदरों के आतंक से त्रस्त हैं. खेत-खलिहान, घर के अंदर-बाहर बंदरों ने उत्पात मचा रखा है. इस वजह से यहां के लोगों ने तय किया है कि वे उसी प्रत्याशी को वोट देंगे जो इन बंदरों से उन्हें निजात दिला सके.  यानि अगर वोट पाना है तो बंदर भगाओ. सही है कुछ लोगे तो कुछ दो तो सही.


विकास की कमी की वजह से ही आज वहां से सबसे अधिक पलायन होता है. लालू ने अपने भाषण में यह बात कही भी कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो राज्य से पलायन जरुर कम करेंगे. लेकिन सालों से वहां की जनता जिस तरह अपने राज्य को छोड़ कर जा रही है उससे यह ट्रेंड इतनी जल्दी खत्म हो जाए उसकी उम्मीद कम ही है.

विकास और राजनीति के बाद बिहार में इस बार राजनीतिक पार्टीयों को एक और मुद्दा नक्सलवाद है. बिहार में नक्सलवाद एक बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. बांग्लादेश से आने वाले नक्सलियों के साथ झारखंड की पृष्टभूमि से जुडे होने की वजह से बिहार नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. बिहार के लगभग 20 जिलों में नक्सलवाद का प्रभाव अच्छा-खासा माना जा सकता है. पटना, गया, औरंगाबाद, अरवल, भभुआ, रोहतास, जहानाबाद, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढी, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, वैशाली, सहरसा और उत्तर प्रदेश के सटे जिलों में नक्सलवाद की गूंज सुनाई देती है. ऐसे में चुनावों में भी नेताओं ने अपनी रोटी नक्सलियों का नाम ले-लेकर सेंकी है.


बिहार की राजनीति में बाहुबली नेता सभी राजनीतिक दलों की जरूरत है. बिहार की राजनीति में एक बात कही जाती है कि जब बैलेट फेल होता है तो बुलेट हावी होने लगती है. और इसी तर्ज पर इस विधानसभा चुनाव में भी कई बाहुबलियों को टिकट दिया गया है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जहां बाहुबली सांसद प्रभुनाथ सिंह के कंधों पर बैलेट का बोझ रखेगी तो वहीं राबड़ी देवी के भाई साधू यादव और पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन भी बाहुबलियों की सेना लेकर खड़े हैं.

मामला साफ है कमोबेश सभी पार्टियां बिहार में बाहुबलियों का सहारा लेंगी क्योंकि ताकत, पैसा और दिमाग के सहारे ही तो राजनीति की बिसात जीती जाती है. लेकिन इन दागी लोगों को टिकट दे अधिकतर पार्टियों ने साबित कर दिया कि वह अपने हित के लिए जनता के हितों की बलि चढ़ाने से बिलकुल भी परहेज नहीं करतीं. जिन लोगों के ऊपर इतने आपाराधिक मामले हों उन्हें किस हक और किस चीज के लिए जनता अपना वोट दे.


आज बिहार की स्थिति ऐसी है कि रात और दिन भय के साये में रहो. डर और पिछड़ेपन से घिरी बिहार की जनता आज थोड़ा चैन की सांस ले सकती है लेकिन वह जिन मुद्दों से लड़ रही है उसे दूर करने में काफी समय लगेगा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2010

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh