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लालू बिन अधूरी बिहार की सियासत

बिहार चुनाव 2010
बिहार चुनाव 2010
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Bihar vidhan sabha electionबिहार विधान सभा के इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव पूरे प्रयास में हैं कि उनका पासा चल जाए और वे वापस बिहार की सत्ता पर काबिज हो जाएं. इसके लिए उन्होंने लोजपा नेता पासवान के साथ गठबंधन किया है. वैसे पासवान का हमेशा से अपना दलित जनाधार रहा है और लालू उसी जनाधार का लाभ उठाना चाहते हैं. यानी उनके मुस्लिम-यादव जनाधार के साथ दलित वोट भी यदि उन्हें मिल जाए तो शायद कुछ चमत्कार हो सके. हालांकि ऐसा कहा जा सकता है कि यह कोई वास्तविक गठबंधन नही अपितु तात्कालिक लाभ के लिए किया गया गठजोड़ है.


लालू की पार्टी की तरफ से सबसे अधिक ध्यान राबडी देवी पर है जो इस बार दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ रही हैं. तो देखते हैं लालू इस बार समोसे में आलू की तरह वापस आते हैं या नीतीश अपना बाजा बजाते रहेंगे.


ला ग्रेजुएट और बिहार के गोपालगंज में 1948 मे एक गरीब परिवार में जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूआत जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे. 1977 मे आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव मे लालू जीते और पहली बार लोकसभा पहुंचे, तब उनकी उम्र 29 साल थी. 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे. 1990 मे वे बिहार के मुख्यमंत्री बने. 1995 में भी वे बड़े बहुमत से विजयी हुए. 1997 में जब सीबीआई ने उनके खिलाफ चारा घोटाला में आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हे मुख्यमंत्री पद से छोड़ना पड़ा. तब उन्होंने सत्ता पर काबिज रहने के लिए एक नया तरीका अपनाया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे, और अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी उनके हाथ ही रही. चारा घोटाले में लालू को जेल भी जाना पड़ा, और उनको कई महीने तक जेल में भी रहना पड़ा. 2004 लोकसभा चुनाव मे एनडीए की करारी हार के बाद लालू रेलमन्त्री बने.


विभिन्न कारणों से लालू हमेशा चर्चा में रहे हैं. जैसे कभी व्यंग्यात्मक शैली और हाजिर जवाबी के कारण तो कभी बिहार के सड़कों को हेमामालिनी के गाल की तरह चमका देने का वादा करने के कारण. विभिन्न घोटालों ने उन्हें चर्चित बनाया ही और सत्ता पर अधिकार बनाए रखने के लिए अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनवाने के कारण तो उनकी प्रसिद्धि पूरे विश्व में हो गयी. अपनी बात कहने का लालू का खास अन्दाज है, यही अन्दाज लालू को बाकी राजनेताओ से अलग करता है.


इस बार लालू चाहते हैं कि वे वापस बिहार की राजनीति में पुरानी पकड़ कायम कर लें लेकिन जनता उनको कितना समर्थन देती है ये तो 24 नवंबर को ही पता चलेगा.

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