- 46 Posts
- 57 Comments
बिहार विधान सभा चुनाव के अवसर पर बाहर रह रहे बिहारी लोगों की राय जाने बगैर बिहार की वास्तविक हालत कैसे समझी जा सकती है. कई बार लोग इस तथ्य की उपेक्षा कर देते हैं और मामले को केवल सतही तौर पर ही समझ पाते है. बिहार में काम-धंधे की गुंजाइश ना होने के कारण बाहर गए लोगों को हमेशा ये बात सालती है कि काश उनका राज्य भी उद्योगों और रोजगार से भरा-पूरा होता तो उन्हें क्यूं बाहर मार खाना पड़ता और क्यूं लोग उन्हें अपने रोजगार और संसाधनों पर कब्जा कर लेने वाला कहते.
लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाते हुए वशिष्ठ यादव कहते हैं कि वे पिछले बारह सालों से दिल्ली में गार्ड की नौकरी कर रहे हैं क्योंकि उनके अपने राज्य बिहार में छोटा-मोटा काम मिलना भी मुश्किल है और नक्सलियों के हिंसा की स्थिति उनके जिले भर में छायी हुई है इसलिए आप अपना भी काम शुरू करें तो बस वसूली आरंभ. अब ऐसे में क्या किया जा सकता है!
बरसों पहले अपने प्रिय राज्य से पलायन करने वाले बंशी की कहानी इससे कहीं ज्यादा मार्मिक है. दबगों ने उनकी जमीन पर कर लिया था और उनकी बेटी के साथ बार-बार बलात्कार होता रहा. कुछ भी बोलने पर परिवार सहित मार डालने की धमकी अलग से. ऊपर से नीचे तक कहीं भी सुनवाई नहीं. मजबूरी में बंशी ने बिहार को अलविदा कह दिया और नोयडा में छोले-बठूरे बेच कर परिवार का पेट पाल रहे हैं.
ऐसे बहुत सारे बिहारी प्रवासी मजदूर मिल जाते हैं जिनकी कहानी मिलती-जुलती है. क्या इन चुनावों के बाद भी यही स्थिति रहेगी बिहार की? नीतीश कुमार ने कुछ बदलाव लाने की कोशिश जरूरत की है लेकिन जमीनी स्तर पर अभी बहुत प्रयास किए जाने की जरूरत है. बिहार से बाहर गए लोगों को जब तक माकूल माहौल का एहसास नहीं हो तब तक कैसा विकास और कैसी राजनीति.
Read Comments