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भारतीय राजनीति कांग्रेस और गांधी परिवार के पूरी ही नही हो सकती. चाचा जवाहरलाल नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी की दूरदर्शी राजनीतिक दृष्टिकोण को साथ संजोने वाले राजीव गांधी के सुपुत्र होने के साथ राजनीति तो उन्हें वंश के तौर पर ही मिली है और ऊपर से अपने पिता की तरह ही शांत स्वभाव और युवा जोश उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर रखता है.
राहुल गांधी यानि कांग्रेस की रीढ़, युवाओं के स्टाइल आइकॉन, राजनीति की मैराथॉन का हीरो और युवा पीढ़ी का नया नेता. यह सब शब्द राहुल के व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए पर्याप्त है. भारत के सबसे संपन्न परिवार में जन्मे और अमेरिका से बड़ी डिग्रियां लेकर लौटे राहुल गांधी को आम लोगों का साथ अनायास ही खींचता है. राह चलते ढाबे का खाना हो या किसी गरीब के घर के खाने की बात हो तो भी पीछे नही हटते कांग्रेस के युवराज. हवा में स्काई डाईविंग सिखने वाले राहुल जमीन पर राजनीति के बडे बडे दिग्गजों को मात देते दिखते है.
लेकिन शुरुआत में जिस तरह उन्हें हमेशा अपनी मां के साथ देखा गया उससे लगा कि शायद वह अभी राजनीति के तौर तरीके सीख रहे हैं. यहां 2004 में उत्तर प्रदेश के अमेठी से विशाल बहुमत से सांसद बन जाने के बावजूद भी राहुल की राजनीति उनकी मां के इशारे पर घुमा करती थी. पर 2004 से 2010 तक एक बहुत बड़ा अंतर आ गया. राहुल अब पार्टी के स्टार प्रचारक बन चुके है. उनके नाम पर ही हजारों की भीड़ उमड़ पड़ती है ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की रैलियों में भीड़ होती थी.
शांत स्वभाव राहुल ने राजनीति के हर भ्रम को जैसे तोड़ा है. लोग कहते है राजनीति के बड़े खिलाड़ी आम लोगों के बीच नहीं जाते, उनसे दो हाथ की दूरी बनाकर रखते हैं. यकीकन राहुल को देखकर ये भ्रम भी दूर हो जाता है. जनता के साथ साथ राहुल अपने परिवार को भी समय देते है जो उन्हें एक आदर्श मनुष्य भी बनाता है. भारत के हर रंग को अपने में समेटने की कोशिश करते राहुल जिस राज्य में जाते हैं उसकी संस्कृति के रंग में रंग जाते हैं.
इस बार राहुल फिर कांग्रेस की नैया को पार लगाने के लिए बिहार पहुचें है जहां उनके बोलों ने जनता के दिलों में कांग्रेस के लिए प्यार भर दिया है. वह यहां से चुनाव नही लड़ रहे है लेकिन फिर भी उनकी उपस्थिति से कई बडे विपक्षी नेता घबराहट में है. एक बार फिर उन्होंने जमीनी मुद्दों का हवाला दे दिखा दिया कि उनमें एक सफल नेता होने के सभी लक्षण है जो एक समाज को चाहिए.
बिहार शाइनिंग की हकीकत से लेकर मजदूरों के पलायन तक को मुद्दा बना उन्होंने आम लोगों की जरुरतों को सरकार के सामने लाने का काम किया है. आम लोगों के बीच अपनी खुशियों को खोजना और आम लोगों की तरह ही उसे पूरा करना के अपने मंत्र के सहारे वह बिहार में अपनी पूरी ताकत लगा रहे है. बिहार से पहले शायद ही उन्होंने कभी इतने उत्साह और तीव्रता से प्रचार किया होगा. उत्तर प्रदेश के बाद अगर राहुल यहां भी कुछ कमाल दिखा पाएं तो यह उनके राजनीतिक कैरियर के लिए एक मील का पत्थर होगा.
जिस तरह राहुल इस बार अकेले ही कांग्रेस का बीड़ा उठा रहे है अगर उसी तरह यह काम उन्होंने आगे भी जारी रखा तो हो सकता है भारत को जल्द ही एक सफल और कारगर नेता मिलेगा जिसकी इस समय देश को बेहद जरुरत है.
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