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दीपिका के शरीर से इतर अगर आप इस वीडियो पर गौर करेंगे तो शायद समझने की कोशिश करेंगे कि “महिला की अपने अस्तित्व पर अपने अधिकार की ही तो बात माय चॉइस है” लड़की के कपडे अगर बाहर का समाज डिसाइड करने लगे तो शायद उसे जरुरत है माय चॉइस की , उस का शरीर कैसा हो,वो नौकरी करे ना करे उस की शादी का फैसला अगर उस के हाथ में नहीं है तो उसे वाकई जरुरत है “माय चॉइस” की
क्या गलत है इस में… एक लड़की पैदा होते ही पहले वो अपने बाप की जागीर है शादी के बाद पति की और बुढ़ापे में अपने बेटों की कहाँ है उस का अपना घर कहाँ है उस की अपने शरीर पर खुद का अधिकार ? शर्मा जी का लड़का दस लड़कियां घुमाये तो वो स्टड और वर्मा जी की लड़की अगर ट्यूशन भी किसी के साथ जाये तो वो चरित्रहीन ?सवाल तो दामिनी पर भी उठे थे कि अगर इतनी रात को वो घर से बाहर थी तो उस के साथ कुछ ना कुछ तो होना ही है तो क्या गलत कहा है दीपिका ने कि क्यूँ कोई और डिसाइड करे कि मैं कितने बजे घर आऊं, कितने बजे घर से जाऊं ??उन इलाकों में जहाँ पर्दा प्रथा है वहां चाहे कोई औरत पुरे गावं में सब से बूढी भी है उसे भी पर्दा करना होता है किस से पर्दा ? कहाँ है उस का खुला आसमान ?यहाँ पर वो इलाके की उन लाखों लड़कियों का सवाल है कहाँ है “माय चॉइस”| उन लड़कियों का सवाल है “माय चॉइस” जिन की पढाई उन की पहली माहवारी के बाद ख़त्म हो जाती है| अस्पताल के हर चार पांच महीने में गर्भपात के लिए जाती महिलाओं की जिन्हें माँ बनने की आज़ादी इस लिए नहीं है क्यूंकि उन के गर्भ में लड़की है उन की कहानी है “माय चॉइस”
उन लड़कियों का सवाल है “माय चॉइस” जिन्हें कभी एहसास भी नहीं हुआ उन की कभी कोई चॉइस है भी या नहीं | सेक्स की वर्जनाएं केवल महिलाओं के लिए ही क्यूँ ? वर्जिनिटी का लेबल केवल महिलाओं के लिए ही क्यूँ ? इन सारे सवालों के केंद्र में है “माय चॉइस”
“माय चॉइस” महिला के समस्त अधिकारों का सवाल है सिर्फ उस की देह का नहीं
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