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नेपाल में आई आपदा पर जगह जगह से किया जा रहा सहयोग इस बात का प्रतीक है कि लोगों के जज्बात अभी मरे नहीं हैं और इंसानियत अभी जिंदा है | लोगों की इस जिंदादिली और जज्बे को सलाम |
पर आज मेरे ये पोस्ट लिखने की वजह कुछ और है,
लोग नेपाल ग्राउंड जीरो पर पहुंचना चाहते हैं, वहां काम करना चाहते हैं और इस काम में उन की भावनाएं काफी जुडी है और इसे मैं गलत भी नहीं ठहराना चाहता पर इसे उत्तराखंड में आई केदारनाथ आपदा से थोडा कनेक्ट करूँ तो यही भावनाएं थी लोगों की वो राहत के कार्य के लिए ग्राउंड जीरो पर पहुंचना चाहते थी खूब जोर शोर से वो दिल्ली मुंबई और भारत के अलग अलग कोनों से राहत कार्यों के लिए पहुंचे पर वहां की सही जानकारी न होने,क्षमताएं और वहां के वतावरण के लिए अनुकूलित न होने की वजह वो वहां बीमार होने शुरू हुए,कई इस तरह के हालात देखकर घबरा गये और कई मानसिक आघात वाली स्थितियों तक भी पहुंचे फिर सेना और अर्धसैनिक बलों को उन लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाने के लिए अलग से मेहनत करनी पड़ी | और इसे मैं मैंन पॉवर के दुर्प्रयोग की तरह देखता हूँ |
आप को मदद करनी है ये एक अच्छी भावना है पर अगर इस में थोडा सा दिमाग लगा कर टीम में किया जाए और सही प्लानिंग के साथ किया जाए तो हम ज्यादा से ज्यादा सहयोग कर पाएंगे| इस पर मैं उत्तराखंड में काम करने वाली एक संस्था “धाद” का जिक्र करना चाहूँगा जिस ने केदारनाथ आपदा के वक़्त सही प्लानिंग के साथ ज्यादा से ज्यादा काम कर पाए | उन्होंने अपनी पूरी टीम को उनकी क्षमताओं के हिसाब से अलग अलग टीम में बाँट दिया पहली टीम फण्ड इकठ्ठा कर रही थी,दूसरी टीम राशन के पैकेट तैयार कर रही थी,तीसरी टीम सरकार के साथ लगातार पत्राचार कर रही थी और वहां की वास्तविक स्थितियों के बारे में बता रही थी चौथी टीम जो ग्राउंड जीरो पर काम कर रही थी,और इस में सारी ही टीम मुख्य थी | “धाद” संस्था ने एक डिस्ट्रीब्यूशन चैनल की तरह भी काम किया उन्होंने उन सारे लोगों और संस्थाओं को अप्रोच किया जो उत्तराखंड से बाहर की थी और वह मदद के लिए हाथ बढ़ा रही थी, क्यूंकि धाद की पहुँच पहाड़ के कोने कोने तक रही है और वो यहाँ की वास्तविकताओं से भी परिचित थे और सदस्य भी अधिकतर पहाड़ से अच्छी तरह से परिचित लोग हैं तो वो काफी अच्छे से काम कर पाए और हर स्तर पर कार्य काफी अच्छे से हुआ और इस पूरी प्रणाली में वो लोग भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जिन्होंने ग्राउंड जीरो पर काम नहीं किया |
अगर आप को लगता है नेपाल के ग्राउंड जीरो पर ही पहुँच कर ही आप मदद कर रहे हैं तो इस विचार को बदलेंअगर आप को वाकई लगता है आप पहाड़ के अनुसार खुद को बदल लेंगे तभी नेपाल जाएँ वरना आप काफी तरह से मदद कर सकते हैं ऐसे कई ग्रुप्स हैं जो ग्राउंड जीरो पर हैं वहां के लिए राहत सामग्रियां इकट्ठी करने,पैकेट बनाने में फण्ड इकठ्ठा करने में आप मदद कर सकते हैं और भी कई तरह के कार्य होते हैं जिन में आप मदद कर सकते हैं | अपनी क्षमताएं पहचान कर मदद की प्रणाली का हिस्सा बने और जरुर बने जो दिखाता आप के अन्दर इंसानियत बाकी है मेरे दोस्त ….
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