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रात के एक बज रहे थे नींद आँखों से कोसों दूर थी,रात हमे वैसे भी पसंद नहीं क्यूंकि हर रोज़ रात में तन्हाईयों से लड़ना पड़ता है और हम रोज ही लड़ लड़ के फिर सो जातें हैं| फेसबुक पर अपनी बढती हुई फ्रेंड लिस्ट को देख रहे थे कि अचानक एक नाम पर रुक गया मैं याद आया कि मेरे भाई की जूनियर थी ये और मेरे पहले प्यार की सीनियर,एक शायरी वाले ग्रुप में मुलाकात हुई थी उन से और ऐड तो कर लिया पर कभी हाई..हैल्लो और हाल चाल से ज्यादा बात नहीं हुई| जब हम उन के प्रोफाइल पर गये और उन की प्रोफाइल पिक्चर को देखा तो एक अजीब सा सूनापन लगा हमे, लगा कि बंदी बहुत कुछ अपने जज्बातों को दबाये बैठी है, चेहरा पढना सीखें है थोडा बहुत, लगा चलो बात कि जाये जरा और हम ने चैट बॉक्स में उन्हें “हेल्लो कैसे हैं मैम?” लिख दिया और कुछ देर में ही जवाब आ गया “हाई बिमल मैं ठीक हूँ तुम कैसे हो और कैसा चल रहा है तुम्हारा काम? ” खैर इधर उधर की हम कुछ देर बतियाते रहे और अचानक हम ने उनसे उनकी पर्सनल ज़िन्दगी के बारे में बतियाना शुरू कर दिया, अजनबी मैं उन के लिए था नहीं तो वो जवाब भी बड़ी आसानी से दे रही थी| बात करते करते जैसे ही हम ने उन के अन्दर जज्बातों का ज्वार पैदा किया और फिर उन से नंबर लिया और रात में ही फ़ोन लगा दिया उन्होंने फ़ोन उठाया और हम ने उनकी ही ज़िन्दगी पर बतियाना शुरू किया हम सवाल करते रहे वो जवाब देते रहे उस दिन उन के अन्दर भरे जज्बातों के भानुमती के पिटारे से सब कुछ बाहर निकल गया और अब बारी थी उन के सवालों की और मेरे जवाबों की , रोज़ खुद की तन्हाईयों से लड़ते थे आज खुद से भी लड़ रहे थे और दूसरों के सवालों से भी, खैर तीन बजे तक दो सिर्फ “हाई हेल्लो” की जान पहचान वाले दो लोग एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जान चुके थे उन्होंने मुझ से कहा भी कि “बिमल आज तक हम ने किसी से अपने राज़ नहीं खोले और इतनी रात तक किसी से बात नहीं की” मैंने कहा मैंने भी.. मेरी तन्हाई कहीं न कहीं उसे मेरी ज़िन्दगी में खाली जगह पर रखने की कोशिश कर रही थी और मैं भी इतना अधीर हो गया कि उस से कह गया “I LOVE YOU” वो जज्बातों के समंदर में गोते तो लगा ही रही थी पर उसे ये भी शायद पता था कि इतना आसान नहीं है हाँ या न कहना उस ने थरथराते लबों से कहा “बिमल अगर ये मजाक है तो प्लीज ऐसा मजाक फिर मत करना” मैंने भी खुद को सम्हालते हुए बातें बदल कर इधर उधर की बतियाने लगा| समझ वो चुकी थी और शायद वक़्त भी साढ़े चार हो रहा था उस ने मुझे और मैंने उसे “बाय” कहा मन शायद दोनों का ही नहीं था और वो “एक रतिया इश्क” की दास्तान वहीँ पर ख़त्म हो गयी|
आज भी वो मेरी दोस्त है फ़ोन पर बात होती है पर अब वो रात में बात करने से डरती है सिर्फ इसलिए कि कहीं फिर मेरी बातें उस के अन्दर जज्बातों का ज्वार भाटा न पैदा कर दे|
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