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करवाचौथ या कड़वाचौथ

Bimal Raturi
Bimal Raturi
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करवाचौथ एक ऐसा टॉपिक जिस पर शायद मुझे लिखने का अधिकार नहीं है,अधिकार ऐसे नहीं है कि पहले तो मैं महिला नहीं हूँ और दूसरा मैं एक कुंवारा २२ साल का लड़का हूँ,जिस ने अभी ज़िन्दगी में प्यार का रस भी ढंग से नहीं चखा है,पर अपने दोस्तों को देख कर,घर में मम्मी, दीदी को देख कर और पड़ोस वाली आंटी को देख कर और हाँ टीवी में हफ्ते में तक़रीबन चार से पांच बार आने वाली कभी ख़ुशी कभी गम से जो कुछ भी मैं करवा चौथ का अंदाज़ा लगा पाया हूँ कुछ शब्दों में बयाँ कर रहा हूँ
एक ऐसी छुट्टी जिसे कोई भी औरत नहीं छोड़ना चाहेगी,पहले तो ये छुट्टी सरकारी नहीं थी पर सरकार को लगा कि ३३% आरक्षण कि मांग चाहे भले ही पूरी न की जा सकती हो पर इसे जरुर पूरी कर देना चाहिए,क्यूंकि सरकार में तो अधिकतर पुरुष बैठे हैं उन्हें लम्बी उम्र मिलेगी तभी तो वो राज काज कर पाएंगे,और टू जी,कोयला घोटाला जैसे सामाजिक कार्य संभव हो पाएंगे, हे भगवान् मैं भी कहाँ भटक गया,ये सरकार भी न भटकाने का ही काम करती है खैर हम करवा चौथ पर थे|
सुबह शुरू होती है अच्छे से,चाहे भले ही आदमी साल भर अपनी बीवी को चाय पिला कर उठता हो पर आज के दिन उस कि बीवी उसे बेड टी पिलाती है,हमारे पडोश में २ साल पहले इस बात पर पति पत्नी में झगडा हो गया था कि रोजाना की तरह पति उठ के चाय ले कर पत्नी के पास गया तो पत्नी भड़क पड़ी उस ने उसे डांट कर कहा कि मैंने कहा था न कि मैं आज तुम्हे चाय पिलाउंगी,तो तुम ने क्यूँ चाय पिलाई….खैर पति की बनाई चाय गिराई गयी,नहा धुल के फ्रेश हो चुके पति दुबारा बेड पर आये और फिर पत्नी कि बनाई हुई बेरंग चाय पी….
चाय पानी के बाद पहले तो वो पति को ऑफिस जाने नहीं देंगी पर अगर भेजेंगी तो हजार हिदायतों के साथ,जल्दी आना,ऑफिस वाली रिया से दूर रहना, ज्यादा काम मत करना,टिफिन अकेले ही खाना  मैंने खुद अपने हाथों से बनाया है(क्यूंकि बाकि दिन पति देव खुद अपने आप नास्ता बनाते हैं) बला.बला.बला….. ये पति पर है कि वो अपनी पत्नी के एक दिनी  हृदय परिवर्तन पर ध्यान दे या नहीं…..
फिर ११ बजे तक महिला सज धज के तैयार हो जाती है,उस दिन महिलाएं गहने पहनती नहीं लादती हैं,बहुत सारी औरतें तो अपनी माँ के गहने भी मँगा लेती है लादने  के लिए ,पड़ोसवाली मिसेज शर्मा,और मिसेज जोशी को जलाने के लिए
उस दिन महिलाएं जम कर अपनी पड़ोसियों को बुलाती हैं,वजह साफ़ है,खिलाने  पिलाने पर खर्च होता नहीं है,ऊपर से अपने गहनों का प्रमोसन भी हो जाता है,पूरा दिन लम्बी लम्बी छोड़ने में गुजर जाता है|
लड़कियों की बात अलग है थोडा बहुत अब घर में बता नहीं सकती की व्रत रख रही हैं, तो घर में नास्ता नहीं रखती,टिफिन पैक करवा लेती हैं मम्मी से,और बस्स….. दिन भर लड़की के बॉयफ्रेंड की @#$%^&^%$%^
चाहे उस दिन खाने पर भले ही पैसे न खर्च हों उस बेचारे के पर दुगना तिगना खर्च होता है उस बेचारे का…… सिर्फ एक  नाटक का पात्र बनने के लिए…..
शाम को कथा का बोलबाला,भगवान् को भी गहने दिखाने  हैं,
अब चाँद का इंतज़ार… वो भी आम तरीके से नहीं होता सारा घर सिर्फ एक ही काम कर रहा होता है….चाँद का इंतज़ार…. वैसे भी भारतियों के लिए चाँद के बहुत मायने हैं किसी को अपना महबूब दीखता है,किसी को लिखी गज़ल दिखती है,किसी को चंदा मामा किसी को कुछ किसी को कुछ…..पूरा मोहल्ला छत  पर आ कर चाँद का इंतज़ार कर रहा होता है,छत में उस दिन डबल लाइट लगाई जाती हैं ताकि महिला के गहने  देखने से कोई छुट न जाये|  
चाँद भी उस दिन थोडा लटके झटके दिखा कर  १० बजे के करीब आता है, फिर पूजा,चाँद के दर्शन, पति के पैर छुना और भी बहुत कुछ…. अब पति की बारी,पानी पिलाया जाता है
और सब औरतें  आखिरी बार जान बुझ के सब को बाय करती हैं ताकि गहनों का प्रोमोशन एक बार फिर हो जाये | 
खाना खाया जाता है,कई पकवान पहली बार बनाये जाते हैं,खाने की टेबल उस दिन भरी भरी लगती है,सब खाना खा कर अपने अपने कमरों में चले जाते हैं,असली करवा चौथ की कहानी अब शुरू होती है पति पत्नी के बीच, गिफ्ट की कहानी,क्यूंकि इस में एक का नाराज़ होना पक्का है,जितना महंगा गिफ्ट मिलेगा उतना ही बीवी खुश होगी और पति की जेब ढीली होगी तो वो बेचारा…नाराज़ भी नहीं हो सकता…घर में ही रहना है…..
लड़कियों वाला मसला थोडा छुट गया छुटा नहीं वैसे क्यूंकि वो अपना व्रत फ़ोन पर उस की फोटो देख कर या विडियो चैट कर के तोडती हैं,और गिफ्ट तो वो दिन में ही मांग लेती है,या कहें खुद खरीदती हैं,
ऐसे ही करवाचौथ नामक  त्योहार  का अंत हो जाता है
केवल बातें ही बाकि रहती हैं अगले दिन……
मैंने एक दिन एक आंटी से पूछा की आंटी आप के व्रत रखने से अंकल की उम्र कैसे बढ़ेगी,उन्होंने कहा की मैंने व्रत रखा है तो बढ़ेगी,मैंने कहा क्या अगर अंकल को गैश है तो डाइजीन आप पीती हो क्या????? कैसे ऐसा सुन कर उन्होंने मुझ पर गुस्सा किया और भगा दिया…. खैर बड़ा ही मजेदार व्रत है ये
हंस भी नहीं सकता ढंग से  क्यूंकि कुछ साल बाद इस नाटक का एक पात्र मैं भी हूँगा,कोई न कोई मेरे और मेरी बीवी के कारनामो पर लेख लिख कर दुनिया को हंसा रहा होगा…..
तभी मैंने इस लेख का टाइटल रखा…करवाचौथ या कड़वाचौथ…             
                

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