कैसे हो तुम ? उफ्फ बस्स बस्स समझ गया मैं कि तुम परेशान हो कि मैंने तुम्हारा वो नाम क्यूँ नहीं लिखा जिस नाम से तुम्हे सब जानते है पर ये ख़त मैं उस सारी बिरादरी को लिख रहा हूँ जो उस “चंद” लोगों में आती है और पता उस चंद लोगों की न कोई जाति है न धर्म न ही उस में लिंग भेद है क्यूंकि वो सिर्फ चंद लोग हैं…
कुछ एक किस्से कहानियां हैं जो तुम्हे सुनानी हैं
कुछ एक दिन पहले एक दोस्त से बात हो रही थी उस ने कहा यार ये एन.जी.ओ. वाले सारे बहुत घटिया लोग हैं, सारे के सारे पैसा खाते हैं कोई कुछ काम नहीं करता सब फण्ड के हेर फेर का खेल है | मैंने उसे कहा यार कितने टाइम से तुम इन एन.जी.ओ. वालों से जुड़े हो? उस ने कहा 1 साल एक एन.जी.ओ में काम किया था | दूसरा सवाल मैंने किया यार तुमने कितने एन.जी.ओ. में घूमा हैं ? उस ने जवाब दिया घूमा तो नहीं पर मैं सब जानता हूँ | (यहाँ पर पहली कहानी ख़त्म होती है…)
एक दोस्त से बात हो रही थी तो वो हाई प्रोफाइल स्कूल में टीचर हैं उन्होंने मुझ से बोला बिमल तुम फालतू ही गाँव में अपनी ज़िन्दगी ख़राब कर रहे हो ये सरकारी स्कूल न कभी सुधरे थे न कभी सुधरेंगे ? वहां के टीचर कभी कुछ नहीं करते ..वो मैडम होती हैं वो सिर्फ स्कूलों में स्वेटर बुनती है बाकी कुछ नहीं करते | मैंने उन से पूछा तुम कभी सरकारी स्कूल गयी हो ? जवाब न में मिला दूसरा सवाल किया मैंने कभी किसी मैडम को स्वेटर बनाते खुद देखा है ? जवाब मिला नहीं खुद तो नहीं देखा पर मैंने सुना है |(यहाँ पर दूसरी कहानी ख़त्म होती है…)
जेंडर पर हो रही एक कार्यशाला में एक युवा ने सवाल किया कि महिलाएं बहुत से कानूनों का गलत फायदा उठाती हैं और कई झूटे आरोप भी लगाती हैं और इस बात को साबित करने के लिए टाइम्स ऑफ़ इण्डिया अखबार में छपी किसी रिपोर्ट का हवाला दे रहे थे | मैंने सवाल किया कभी किसी बलात्कार लड़की से मिले हो ? उस ने सर न में हिलाया | मैंने फिर पूछा कभी किसी ऐसी महिला से मिले हो जिस ने जूठे आरोप लगा कर सब कुछ हड़प लिया हो और ऐश से अपनी ज़िन्दगी काट रही हो ? ? जवाब मिला नहीं खुद तो नहीं देखा पर मैंने सुना है |(यहाँ पर तीसरी कहानी भी ख़त्म होती है…)
अब तुम्हे ये लग रहा होगा कि ये किस्से कहानियां मैंने तुम्हें क्यूँ सुनाई ? ऊपर तीनों कहानियों में कुछ एक चंद लोग थे जो कभी उन हालातों से नहीं गुजरे पर उन्होंने फिर भी एक भारी भरकम विचार बना लिया है कि ऐसा ही होता है सब जगह पहली कहानी में वालंटियर स्तर पर काम करने वाला एक बंदा सारे एन.जी.ओ. सिस्टम को गलत ठहरा रहा था दूसरी में कभी सरकारी स्कूल न देखे हुए उस सिस्टम में कभी न आने वाले बदलाव के बारे में बता रही थी और तीसरे में महिला मुद्दों की A..B..C..D भी न जानने वाले सारी महिलाओं को झुटा ठहरा रहे थे | कितना आसान था ये सब….
अब मेरे प्यारे “चंद लोगों” मैं तुम्हे जवाब देता हूँ तुमने तो सिर्फ एक वाक्य बोला पर तुम्हे कुछ भी पीछे की कहानियों का पता नहीं है तुम्हे नहीं पता कि कितना मुस्किल है किसी भी महिला के लिए सिर्फ इतना रिपोर्ट करना कि मेरे साथ कुछ गलत हुआ है | तुम्हे खबर नहीं है सरकारी स्कूलों के सिस्टम का और न ही उन एन.जी.ओ. वालों का जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी खपा दी लोगों के बीच निस्वार्थ भाव से काम करने में |
ऐसे ही कुछ कह देना आसान होता है बहुत आसान पर कितना मुस्किल होता है खुद को उस जगह पर रख के देखना… किन्ही एक दो लोगों की हरकत के लिए हम सब को कभी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते …
बातों से पब्लिसिटी पाना बहुत आसान है पर गौर करो अपनी बातों पर कहीं तुम्हारी कही किसी बात का किसी की ज़िन्दगी में बहुत बुरा असर न हो जाए और जब तक तुम उस बात पर अपनी समझ बना पाओ तब तक सामने वाले की ज़िन्दगी ताश के पत्तों की तरह बिखर चुकी हो …
तो उम्मीद करता हूँ “चंद लोगों” से कि कोई भी बात कहने से पहले ये जरुर सोच लें कि जो बात कह रहें हैं उस का असर क्या हो सकता है …और मुझे पता है आप सिर्फ चंद लोग ही है क्यूंकि दुनिया में औरों को काफी काम है गपियाने के अलावा …
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