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मानसिक बदलाव से रुकेंगी “महिला हिंसा”

Bimal Raturi
Bimal Raturi
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“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता” महिला मुद्दों पर जितने सेमिनारों का हिस्सा रहा हूँ तक़रीबन 99% सेमिनारों में यह लाइन जरुर कही जाती है तो शुरुवात मैं भी इसी से कर रहा हूँ, हाँ आगे इस लाइन के साथ क्या होगा इस की जिम्मेदारी मेरी नहीं है |

भारत का संविधान किसी भी भारतीय बच्चे के जन्म के समय से ही उसे 7 मौलिक अधिकार देता है उन में से एक है,“समानता का अधिकार” और यही वह पहला अधिकार है जिसका लिंग के आधार पर सब से पहले हनन होता है और यही महिला हिंसा की पहली कड़ी है |

2010 में देहरादून की शांत वादियों में एक घटना घटी जिससे अचानक देहरादून सुर्ख़ियों में आ गया| एक इंजीनियर ने अपनी पत्नी को 72 टुकड़ों में काट दिया और यह नृशंश हत्याकांड उस साल का सब से निर्दयता से किया हुआ हत्याकांड था पर यह इस कहानी का अंत था शुरुवात इस कहानी की 2 इंजिनीयरों की प्रेमकहानी से हुई | लड़का दिल्ली विश्वविध्यालय का टॉपर और लड़की भी विदेश की किसी विश्वविद्यालय से निकली हुई, दोनों के बड़े बड़े सपने आसमान छूने के, इन्ही सपनों के साथ दोनों ने शादी की और शादी के कुछ वक़्त बाद ही लड़के ने लड़की पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाना शुरू किया और घर परिवार को अपनी पहली जिम्मेदारी मानकर उस ने नौकरी छोड़ दी पर बात यहाँ पर भी ख़त्म न हुई, लड़के की नौकरी और निजी ज़िन्दगी की परेशानियाँ कुंठा में बदलने लगी और वह अपनी पत्नी संग मारपीट करने लगा, कभी कभी की मारपीट अब लड़की की रोजाना की ज़िन्दगी का हिस्सा हो गयी | हर रात मारपीट के जख्मों को मेकअप के पीछे छिपा कर वो उस परिवार की लाज समाज के सामने रखे हुई थी इसी बीच दोनों के दो बच्चे भी हुए पर मारपीट का सिलसिला नहीं रुका| जब पानी सर के ऊपर हो गया तो महिला ने एक छुप कर महिला संरक्षण अधिकारी के सामने अपनी आपबीती कही और इस पर अधिकारी ने तुरंत कार्यवाही करते हुए उस के पति

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को बुलाया और सख्त हिदायतें दी इसी दौरान हुई काउंसिलिंग में महिला अधिकारी ने पाया कि वह पुरुष मानसिक रूप से ठीक नहीं है और उन्होंने उस महिला को उस के साथ न रहने को कहा, पर सामाजिक लोकलाज के डर से वह महिला दुबारा उसी के साथ रहने लगी और इसी बात के कुछ दिनों बाद उस आदमी ने घर में मारपीट के बाद 72 टुकड़ों में अपनी पत्नी को काट दिया | जब इस हत्याकांड के बाद उस पुरुष की जेल में काउंसिलिंग हुई तो उस ने कहा कि उस के पिता उस की माँ को बचपन में उसी के सामने मारते थे बहुत मारते थे| यह केस “अनुपमा गुलाटी हत्याकांड” नाम से प्रसिद्द हुआ था और इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी राजेश गुलाटी आज भी देहरादून की जेल में बंद है और अपनी सजा काट रहा है

इस केस ने लोगों की उस धारणा को कठघरे में खड़ा कर दिया जिस के हिसाब से “महिला हिंसा” केवल निम्न और अशिक्षित लोगों में होती है | महिला हिंसा न जाति देख कर होती है न धर्म देख कर न ही वर्ग न ही शिक्षा दीक्षा |

सवाल अधिकतर जो पैदा होता है कि “महिला हिंसा” की शुरुवात कैसे होती है तो इस का जवाब यह है कि “महिला हिंसा” आखिरी उत्पाद है और इस के उत्पादन की शुरुवात हमारे पैदा होने से ही हो जाती है एक बच्चा जो पैदा हुआ उसे हमारा समाज लड़का लड़की में बाँट देता है कुछ नियम लड़कों के लिए बना दिए और लड़कियों के लिए बंदिशों की एक पोथी लिख दी लड़की ये नहीं कर सकती वो नहीं कर सकती | और जिस ये हमारी सोच का अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं | हाथ उठाना,मारना,पीटना,गाली गलौच करना कई समाज की एक आम घटना है जिस में याद रखने लायक कुछ भी नहीं है और इन्ही सब के बीच पले बढे बच्चे को कभी यह पता ही नहीं चल पाता यह सब गलत है | जिस बच्चे ने कभी देखा ही नहीं है घर की किसी महिला को समान स्थान पाते हुए वह कैसे उसे अपनी ज़िन्दगी में अपना सकता है ? पित्रसत्ता की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी है जिस का फल हमेशा “महिला हिंसा” के रूप में सामने आता है और कुछ एक आंकड़े हैं जो हमारे सामने कुछ सच्चाईयां बयां करने और हमें आईना दिखाने के लिए काफी है,

1-      2103 के ग्लोबल रिव्यु डाटा के हिसाब से दुनिया भर में 35% महिलाएं अलग अलग तरह से महिला हिंसा का शिकार हुई हैं |

2-      महिला हिंसा की शुरुवात घर से होती है 2012 में महिला हिंसा के दौरान मारी गयी कुल महिलाओं में से 50% से ज्यादा की हत्या परिवार के किसी सदस्य द्वारा की गयी |

3-      नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हिसाब से हर 3 मिनट में किसी ने किसी महिला को किसी भी प्रकार की हिंसा का शिकार होती है

डाटा के साथ खेल खेल के हम चीजों के अनुमान लगाने में ज्यादा व्यस्त हो जाते है शायद इन आंकड़ों से इतर कुछ एक बात कहूँ जो ज्यादा कडवी है, हमारे देश की राजधानी दिल्ली को रेप “कैपिटल ऑफ़ इंडिया” भी कहा जाता है, विदेशों में भारत की छवी रेप कंट्री की तरह बन रही है अभी कुछ दिन पहले जर्मनी की एक यूनिवर्सिटी ने भारत के एक छात्र को इस लिए इंटर्नशिप पर लेने से मना कर दिया क्यूंकि उसे डर था भारत बलात्कारियों का देश है| निर्भया केस के बाद भारत में पर्यटक बन के आने वाली महिलाओं की संख्या में बड़ी गिरावट आती है और जो यहाँ से घूम के लौटी है वो जो अपने ब्लॉग लिख रही हैं उस से हमारी साख दिन प्रतिदिन गिर रही है ||

हमारे देश में महिला हिंसा के जो मुख्य तरीके सामने आ रहे हैं उन में बलात्कार,भ्रूण हत्या,एसिड अटैक,घरेलु हिंसा,दहेज़ हत्या,हॉनर किलिंग,मानव तस्करी मुख्य है और यह सब आपस में इतने जुड़े हुए हैं कि इन सब पर काबू पाना इतना आसान नहीं है और इन्हें अलग अलग तरीकों से हम अपने चारों ओर होते देखते हैं |

अब सवाल उठता है कि समस्या इतनी गंभीर है तो हल क्या है तो मेरा पहला हल है कि “महिलाओं को भगवान् मानना छोड़ के पहले उन्हें इंसान की नज़र से देखना शुरू कीजिये” |

“क्या फायदा उन्हें नौ दिन पूजने का जिन्हें साल भर जूते की नोक पर सोचते हो”

हाँ यही सच है हमारे समाज का हम नवरात्रे के नौ दिन तो महिलाओं को देवी मानने का ढोंग करते हैं पर उस के बाद साल भर वही मानसिकता महिला का स्थान पुरुषों के चरणों में होता है| हमारे समाज की खासियत है “हम दूसरों को नीचा दिखा कर खुद को ऊँचा करते हैं” यही मुख्य वजह है कि हम महिला को अपनी जागीर समझते हैं और उस पर किसी भी प्रकार की जादती या हिंसा को अपना अधिकार समझते हैं और इसे एक सामान्य घटना मानते हैं |

मैं बड़े स्तर पर अपने नज़रिए में इस के तीन स्तर पर समाधान देखता हूँ पहला “व्यक्तिगत” दूसरा “सामाजिक” और तीसरा “ब्यवस्था”

समाज की पहली ईकाई एक व्यक्ति है महिलाओं को समान अधिकार मिले अगर यह हर व्यक्ति अपने स्तर पर सुनिश्चित करे तो बड़े बदलाव की तरफ पहला कदम होगा क्यूंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे पर जब तक हम अपने स्तर पर नहीं अपनी सोच बदलेंगे तब तक सारी बातें हवाई ही होंगी| व्यक्ति परिवार का हिस्सा है बचपन से ही अगर वो आसपास के वातावरण में बराबरी और हिंसात्मकता से दूर रहता है तो बड़े बदलाव की नींव होगी |

“सामाजिक स्तर” पर अगर बात करें तो हमारा सामाजिक तानाबाना जो शर्मा जी के बेटे की हरकतों से ज्यादा वर्मा जी की लड़की के कपड़ों पे ज्यादा ध्यान देता है और यह निर्णय देता है कि लड़कियों को मोबाइल नहीं देने चाहिए उन्हें नौकरियां नहीं करनी चाहिए वो घर की इज्ज़त है| जो यह सोचता है कि बलात्कार के लिए पुरुष नहीं महिला जिम्मेदार है और भी न जाने क्या है ऐसे सोचों पर एक बड़े बदलाव की जरुरत है | निर्भया केस ने महिला हिंसा पर जो एक बहस खड़ी की वो एक बड़े परिवर्तन की तरफ इशारा है |

तीसरा और सब से मुख्य “ब्यवस्था परिवर्तन” हमारे पास कानूनों की अब वाकई कमी नहीं है घरेलु हिंसा अधिनियम,दहेज़ रोधी,लिंग जांच जैसे कानून हमारे पास हैं पर कितना उनका पालन सही से हो रहा है हमारे लिए यह मायने रखता है | निर्भया केस के बाद गठित “जस्टिस वर्मा कमिटी” की रिपोर्ट से कई बिन्दुओं को लेकर सरकार ने कानून बनाया और उस के अनुसार “पुलिस रिफोर्म” की बात कही गयी है, महिला हेल्पलाइन,महिला थानों की बात कही गयी है पर इन बातों की हकीकतें क्या हैं आप के सामने हैं| कोर्ट में फैसलों पर हो रही देरी हमारी चिंता बढ़ा रही है हमें ऐसे मामलों के लिए “फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट” की आवश्कता है| हमे हर स्तर पर संवेदनशील होने की जरुरत है|

इस विषय पर कानून से ज्यादा अपनी सोच पर बदलाव लाने पर ज्यादा बल देता हूँ |

महिला को इंसान समझिये और आप संवेदनशील रहिये,”महिला हिंसा” खुदबखुद रुक जाएगी |

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