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चित्तवृत्ति निरोधः योगः | आचार्य पतंजलि यह शब्द कहकर योग दर्शन को भावी पीढ़ियों हेतु सौंप गए, परन्तु समय चक्र के चलते-चलते यह दर्शन तो नहीं भुलाया जा सका हाँ यह धार्मिक पुस्तक अवश्य बनकर रह गयी| प्रयोगात्मक नहीं बन पाई, जबकि यह होना चािहए था कि यह सर्व समाज के लिए बने लेकिन ऐसा नहीं हुआ, इसी का परिणाम यह हुआ कि योग हमसे दूर हो गया लेकिन इसके बीज अवश्य कुछ हमारे अंदर बने रहे जिस से हम आज भी भारतीय हैं| दूर-देहाती समाजों में कुछ प्रक्रियाएं ऐसी थीं जिससे समाज कि महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत रहतीं थीं| इनमें चक्की पीसना, कुंए से पानी निकलना, ही बहुत था| समय बदला जीवन शैली बदली और मानव जीवन भी इतना बदल गया कि हमने सभी प्रक्रियायों को तिलांजलि देदी| आज परिणाम यह है कि समाज कई रोगों से ग्रसित हो गया है जिनमें मनोदैहिक रोग अधिक है| हमने अपनी सुविधाओं के लिए प्रकृति से छेड़-छाड़ की और प्राणवायु के स्टार को इतना घटा दिया कि हम अब ओसजन पर ही जीवित रह पते हैं जबकि प्राणवायु पेड़-पौधों-पुष्पों वनस्पतियों से मिलती है| योग कि प्रक्रिया प्राणवायु पर आधारित है, वाही न मिली तो शरीर में प्राण तत्त्व कि मात्रा घटेगी फलस्वरूप योग का प्रतिफल विपरीत होगा| जबकि होना चाहिए कि सूक्ष्म योग बागों और हरे-भरे स्थानो पर हो| ऐसा न होने पर सारी प्रक्रिया उलटी ही होगी. और परिणाम उल्टा आएगा
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