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मेरे गांव का मनसुख लाल आजकल बहुत दीवाना हो गया है| इसका मुख्य कारन यह है कि नेता जी ने नयी साइकिल दे दी है| अब वह उसी की सवारी करता फिर रहा है| गांव की सड़क बेकार है सड़क कहो या गड्ढे, अथवा गड्ढों में सड़क,मेरी तो समझ से बिलकुल परे है| पर मनसुख लाल भूखा प्यासा उसी पर सवार रहता है| आजकल शहरों में मेट्रो रेल चल रहीं हैं और मनसुख लाल साईकिल में मगन है| उसकी ज़मीन आगरा लखनऊ वाले हाइवे में चली गयी है लेकिन वह मगन है और भविष्य की बिलकुल भी चिंता नहीं है| हम ऐसे हैं की बयानबाजों की बातो पर विश्वास करके ज़िंदा हैं| यहाँ हर आदमी अपनी बिरादरी की साख को बाँध रहा है…सारा शहर शहर सगे सम्बन्धियों से भर गया है और ज़मीन के लाले पड़ गए हैं.मेरा सूबा तो उत्तम लग ही रहा है परन्तु है नहीं क्योंकि हम लोहिया जी के चश्मे से देखते है, लोहिया के चश्मे की यही करामात है की जो होता है वह नहीं दीखता और जो होता नहीं वह दिखाई देता है,मेरे शहर के नौजवान फेसबुकिया हैं और फेसबुक पर उन्हें विकास ही विकास दिखाई दे रहा है अब उनके इरादे भी नए हो गए हैं| हम कुछ कर भी तो नहीं प रहे हैं अब तो नए इरादे लेकर मनसुख लाल मुझको ही तड़ी मर देता है कि” हम खांटी समाजवादी हैं” मैं तो दर जाता हूँ कि मैं तो पक्का बाबा साहेब आंबेडकर जी का अनुयायी हूँ और भूल जाता हूँ कि बन्दूको की विरासत में ज़िंदा रहूंगा या नहीं…. खैर अब सोचना नहीं है अगर मेरे गांव में शौचालय नहीं तो कोइ बात नहीं लेकिन वायदे तो सभी पूरे हो गए हैं और अब नए इरादे भी होने चाहिए….आइए मयन मर्ज की जय बोलें और नए साल २०१७ की ओर प्रयाण करे ताकि साईकिल पर चढ़कर फिर सूबा उत्तम बना सकूं जय हिन्द बी के चन्द्रसखी …..????
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