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झाड़ू कहे तू क्या करे,क्यों झारत है मोय,?राजनीति के बेवरे मैं झाड़ूँगी तोय|| लाठी में झाड़ू बंधी कहे पुकार-पुकार,मेरी निंदा मत करो में सब दूँगी झार|| जी हाँ मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि झाड़ू अनादिकाल से अपना जादू बिखेरती आयी है और यह जादू बिखेरती भी रहेगी| समाज के ठेकेदारों ने झाड़ू को एक ही हाथ में पकड़ा दिया है, तब से यह एक ही हाथ में थमी रह गयी है,और आज तक छूट नहीं पा रही है|आदिकाल से यह झाड़ू सब जगह सफाई करती हुई थक चुकी है,लेकिन राजनीति कि झाड़ू ने इसकी कमर तोड़ दी है| सर्वप्रथम भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए दिल्ली में झाड़ू चली लेकिन उस झाड़ू ने कुछ भी कमाल नहीं दिखाया,उलटी झाड़ू ही विदा हो गयी| सफाई कोई एक समाज नहीं कर सकता है, सफाई एक गुण होना चाहिए सो नहीं हो पाया है| यदि एक ही समाज झाड़ू से सफाई कर पाता तो आज भारत इतना गंदा नहीं होता जितना दिखाई देता है| जिसको देखो वहीँ थूक देता है,मेट्रो रेल में पढ़े-लिखे लोग भी अपना अपशिष्ट छोड़कर चले जाते हैं और मैं देखता रह जाता हूँ| शहरों में जो जहां चाहता है वहीँ कूड़ा डालदेता है, थूक देता है,मूत्र विसर्जन करता दिखाई देता है,कहाँ तक कहा जाय मैं हार कर बेचारे झाड़ू वाले भोले-भाले ताऊ को सवेरे-सवेरे हाथ में झाड़ू लिए हांफकर सफाई करते हुए देखता हूँ,और सोचता हूँ,” ताऊ खड़ा बाजार में झाड़ू थामें हाथ| मुंह पर तो रौनक नहीं,सिकुड़ा उसका माथ||” उसपर किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री कि दुहाई प्रशंसनीय है “झाड़ू लगाने के फैशन से तो सफाईकर्मियों की नौकरी ही खतरे में पड़ गयी है|” अरे भाई साहेब सच कह रहे हैं आप सच्चे जातिवाद के पोषक हैं कि समाजों कि दशा नहीं बदलनी चाहिए यही तो भारत का सच्चा दर्शन है| बदलो यह लोकतंत्र है राजतंत्र नही आप राजतंत्र की तरह सोचते हैं,यह झाड़ू सबकी है सफाई तभी होगी जब सामाजिक सोच में परिवर्तन होगा| यदि उ.प. में झाड़ू दद्दा दिलवाएं तो वह सामाजिक सरोकार है और कोई तो बेकार है | आईये दीवाली के त्यौहार पर प्रकाश-पर्व मनाकर सफाईपसंद समाज का निर्माण करें, सभी को दीवाली की शुभकानाएं…जैहिंद बी.के चन्द्रसखी >>>>>>>
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