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पय पानं भुजङ्गानाम केवलम विष वर्धनम|

CHANDRASAKHI
CHANDRASAKHI
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कंस गयो द्वापर सों, पर आज कंस हजार भये| हजार के कंस विगार करें, पर कृष्ण न एकउ बार भये| हे! राम रमापति आजु सुनहु, तुम काहे न आय, अवधेश से बालक राम भये? रक्तबीज से दौरि परें,आतंक मचाय के काज भये,आतंकी मारि के ढेर करहु, विद्यार्जन के नाश भये|| आज का समय संक्रमण का है | जहाँ अच्छे-बुरे का पता लगाना बहुत मुश्किल हो रहा है| दो संस्कृतियाँ नहीं यहाँ कई संस्कृतियाँ आपस में टकरा रहीं हैं| वे अपने-अपने धर्मों को अपने सोचने के हिसाब से परिभाषित कर रहे हैं, परन्तु यह नितांत घोर अपराध है , कहीं बालिकाओं को गर्भ में ही मार दिया जाता है, और कहीं बाहर उनके साथ जघन्य अपराध हो रहा है|, वे लोग इस सबसे भी दो पग आगे हैं जो निरीह होनहार भविष्य का सामूहिक संहार करते हैं और गर्व से कहते हैं की हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है ऐसा तो हमने कंस को भी करते नहीं देखा| लेकिन हे मानवता के पुजारिओं आप भी क्या कर सकते हो? उनका दर्शन ही अलग तरह का है| शायद ईश्वर भी उन्हों ने अलग बना लिया होगा? पर ईश्वरीय सत्ता तो एक ही है| उसे बाँट पाना बहुत कठिन है| पर उनके लिए सब मुमकिन है| परन्तु हे! ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे! वे कमसे कम उन निरीह विद्यार्थियों का सामूहिक संहार तो न करें जिनका कोई अपराध नहीं है| आज नहीं तो कल यह संतति अवश्य बदला लेगी जो आज यह सब भुगत रही है| मैं मानवतावादियों से अपील करता हूँ कि कल के होनहार भविष्य की रक्षा करो तो यह हमारी सुरक्षा करेगी| धर्मो रक्षति रक्षितः|||||| जय हिन्द बी.के. चन्द्रसखी

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