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मैं शौच करन कैसे जाऊं? ठाकुर ठाड़े मेरे खेत |

CHANDRASAKHI
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शौच करन को गयी हार में, ठाकुर ठाड़े खेत| ठाकुर जू किरपा करी, खेत हो गया रेत|| घर-घर शौचालय नहीं पर्दा को नहीं नाम| आधुनिकता की रेल पर भागें सरपट गाम|| हे! प्रभु! किरपा करो महाराज भारत की ४७% आबादी यानि आधी आबादी खुले में शौच करने जा रही है| हम यह कहते नहीं थकते हैं कि हम अब आधुनिक हो गए हैं | इस आधुनिकता कि होड़ में हम नाटो अधुनक हो पा रहे हैं और न ही अपनी विरासत से जुड़ पा रहे हैं| महात्मा गांधी ने यह बताया था कि” खेतों में खाईयां खोदकर उनमें घास-फूस कि टट्टियाँ खड़ी की जाएँ और शौच के बाद उन्हें ढक दिया जाये| ” यह बहुत अच्छा प्रयोग था| पर हम अब आधुनिक हो गए हैं| हम घर के रहे न घाट के | यहां ब्रिटेन से बग्घी तो आ सकती है पर उसी प्रांत में आधी आबादी अब भी खुले में शौच करने जाती है| हम विश्व शौचालय दिवस भले ही मना ले और किसी का जन्म दिवस धूम-धाम और कोरी शान -ओ-शौकत से करोंडो रूपये फूंककर भले ही मना ले पर भारतीयता तो कबीर से ही मिल सकती है| साईकिल की सवारी का आनंद लेकर बग्घी की सवारी करना देहाती महिलाओं के अधिकारों का हनन है, मुझे चाहे कोई कुछ भी कहे मैं कबीर और नानक के दावों को नहीं झुठला सकता हूँ| और अब रही लोहिया जी की बात तो ” मांस पसारि चील रखवारी”| या” ठाड़ा सिंह चरावै गाय|” की कहावत सत्य सिद्ध हो रही है| मेरे गाँओ की महिलायें आज भी खुले में शौच जतिन है अब मई अकेला सबके लिए तो शौचालय नहीं बनवा सकता हूँ|| यहाँ यह बता देना आवश्यक है,कि एक और जहाँ ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”| को तो गाते हैं पर उन्ही महिलाओं को खुले में शौच के लिए भेजते हैं| यह विरोधाभास नहीं तो और क्या है? उन्ही के मतों से जीतकर राजनेता बनते है और फिर उन्हीं को भूलकर हम अपने देश का नाम विश्व शौचालय दिवस मनाकर एक सन्देश देते हैंकि हम देविओं के उपासक हैं धन्य हैं हम और धन्य हैं हमारी सरकारें जो पैसा तो हैं परन्तु एक दूसरे पर डालकर अपनी इतिश्री कर लेते हैं | लोहिया जी धन्य हैं आप | आप जब इस देश से विदा हुए तो आपके पास मात्र आपका झोला और किताबें ही थीं पर आपके वारिस तो………………………. जागो भारत जागो!!!! जय हिन्द बी. के चन्द्रसखी…………

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