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आज मेरे गाँव के चतुरी,फगुआ,भिखुआ,और सुखिया चाची बौराने फिर रहे हैं| मुझे पता भी नहीं है कि वे सब इस तरह से क्यों बौरा गए हैं? पता करने पर मालूम हुआ कि आज तो बड़े दद्दा का अवतरण दिवस है, इसी लिए वे सब सुन्दर सपनों के राजा बन गए हैं| कलकत्ता से सजावटी सामान आ गए हैं और लोग पालक पांवड़े बिछाए अपने दद्दा का इंतज़ार कर रहे हैं | पूरे नगर को दुल्हन कि तरह सजाया गया हैं| इन्द्र का नगर भी इसके सामने कुछ भी नहीं है| करोड़ों रुपये इसी साज-सज्जा में बहा दिए गए हैं | मेरे शहर के साबितगंज के कलाकार भुखमरी के सताए अपना जीवन जैसे -तैसे काट रहे है | यहां ए,आर रेहमान और उनके साथी रेम्प और मंच पर अनोखी अदा से दद्दा का मन बहलाएंगे| लेकिन साबितगंज मोहल्ले के बेचारे नक़्क़ाल जो रेहमान से भी आगे हो सकते हैं उनको वहां से एक फूटी कौड़ी भी नसीब नहीं होगी | यह है असली राजशाही और हम बाइक कि जगह साइकिल कि सवारी में ही उलझा दिए गए हैं|कितना सुन्दर सपना है? जो मिठाई से भी मीठा है| हम उस राजशाही के आदी हो गए हैं जो हमें इसमें ज़िंदा रख रही है| मेरे गाँव में ऐसी सिहरन सी फैली हुई है कि लोग मतवाले हो गए है यह इक्कीसवीं सदी है और आज भी मेरे गाँव के ५३प्रतिशत लोग खुले में शौच जा रहे है हैं उनमे से सभी पर तो मोबाइल फ़ोन हैं लेकिन उनके घरों में शौचालय नहीं है | उत्कृष्ट गाँव बन भी गए तो भी लोग दद्दा के दीवाने रहेंगे | लेकिन वे गाँव शौचालयों से विहीन होंगे| दद्दा के जनम दिवस पर करोड़ों पानी कि तरह बहा दिए जायेंगे लेकिन मेरे शहर के लोग कर्क रोग से मरते रहेंगे नौजवानों को रोज़गार तो सपना ही होगा सुखिया की खेती एक्सप्रेस वे के बनने में चली जाएगी | फिर खाने के लाले पड़ेंगे | मैं भी कितना मुर्ख हूँ कि इन लोगों की दशा पर चला जाना जाता हूँ| लेकिन जब मेरे कस्बे का वार्षिक समारोह होगा तो उसमें भी करोड़ों अरबों बहा दिए जायेंगे| मैं यह भी मानता हूँ की इससे लोगों को रोज़गार मिलता है लेकिन कितना ? हम भी लोकशाही के स्थान पर राजशाही के हामी हैं| यही तो हमारे गुरु कर्पूरी ठाकुर,राजनारायण और लोहिया जी ने सिखाया था की लोकशाही तो सपना दिखाना है असली तो राज शाही है इसे मजबूत करना है || आईये भारतीय विरासत को बचाये और परवर को खुशहाल बांये जय हिन्द………बी.के चन्द्रसखी \|||
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