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अरे! मर्द हो तो मच्छर बनकर दिखाओ न.

मेरे बोल
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विधाता ने बड़ी फुरसत से बनाया है , मच्छर को. कितनी खूबियाँ हैं एक छोटी सी काया में.कलाबाजी करते हुए उड़ान भरना फिर छिपकर एकाएक प्रकट होना. अपने लक्ष्य को केन्द्रित कर उस पर ही अपना सारा प्यार और संगीत समर्पित करना.लक्ष्य द्वारा प्रतिरोध करने पर चकमा देकर गायब हो जाना.जब तक ये शरीर के इर्द-गिर्द मंडराता है,चैन खो जाता है,नींद खो जाती है.इस अहसास से शरीर का रोम-रोम पुलकित हो जाता है कि मिट्टी से बनी इस काया को ये कहीं न कहीं जरूर प्यार करेगा.इसके संगीत से मंत्रमुग्ध होकर हाथ स्वयं ही उसी दशा और दिशा में संपर्क करने चल पड़ता है.मन तो करता है कि इसकी आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार करवा दें, पर शायद उसकी रगों में अपना ही खून होने के अहसास से निशाना चूक जाता है.
कभी गंभीरता से सोचिए, कितनी मेहनत और कितना जोखिम है उसकी जिन्दगी में. वह अपना भोजन और आपका प्यार पाने के लिए हर समय अपनी जान की बाजी लगाकर आता है.सफल हो गया तो भूख मिटेगी, वर्ना मौत निश्चित है. लोग जाने क्या-क्या अस्त्र लेकर इसके पीछे पड़े रहते हैं. कायल,टिकिया, पेस्ट, लिक्विड,स्प्रे. किसी के हाथ कुछ नहीं पड़ा तो चप्पल लेकर ही….अब तो छोटे-छोटे बच्चे भी कहते हैं कि पुश करो खुश रहो. ये अपने ऊपर होने वाले समस्त आघातों को झेलकर नई स्फूर्ति,नए जोश और नई ऊर्जा के साथ समस्त बाधाओं को लांघते हुए गुनगुनाते हुए पुनः अपने कार्य में तल्लीन हो जाता है. स्प्रे नामक अस्त्र से होने वाले आघात को देखकर लगता है कि ये बंधु-बांधवों सहित परलोक सिधार गया, पर कुछ ही पलों में देखो कैसा पलटी मारकर रॉकेट की गति से चम्पत हो जाता है.इनकी मेहनत,लगन और जिन्जीविषा को सलाम करना ही पड़ेगा.
नियति ने खून ही मच्छर का भोजन बनाया है, वो तो खून पीएगा ही. मच्छर तो अपने पेट की मजबूरी में आता है पर खुलेआम आता है, जान हथेली पर रखकर आता है. पर क्या सिर्फ मच्छर ही खून पीता है? नहीं दीखते हमारे समाज में कई लोग जो खून पीने में मच्छर से कई गुना आगे हैं. दूसरों की हत्या कर ,बलात्कार कर, अत्याचार कर, दूसरों का हक़ छीनकर ये खून ही तो पीते हैं. ये तो साधन संपन्न हैं,नियति ने इनको सब कुछ दिया है. हाथ-पैर दिए, पशुओं से बेहतर दिमाग दिया, काम करने के अवसर दिए. फिर भी ये किसी न किसी तरीके से दूसरों का खून पीने में व्यस्त हो गए.
क्या कह रहे हैं? ये मच्छर की तरह लोगों का खून पी रहे हैं.अरे! मच्छर और इनमें कोई समानता नहीं.मच्छर तो इनसे महान है, बहुत महान. मच्छर तो असली मर्द है, अपना पेट भरने के लिए मेहनत करता है, हमला करने से पहले चेतावनी देता है और एक दो बार थोडा खून पीकर छोड़ देता है.मच्छर कभी मच्छर का खून नहीं पीता है.ये ढोंगी कहने को तो शाकाहारी हैं पर निर्दोष लोगों का खून तब तक पीते हैं, कि अगले की जान निकल जाए. फिर उसके बाद उसकी औलादों का भी खून पीते हैं.इनसे बस एक सवाल है कि ऐसे खून क्यों पीते हो लोगों का? अरे! मर्द हो तो मच्छर बनकर दिखाओ न.

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