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कोयले की कालिख-सफेदपोशों पर

मेरे बोल
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कोयला तो काला ही होता है, इसके रंग पर मत जाईये. नेता सफ़ेद चोला धारण करता है, इसके रंग पर भी मत जाईये.सफ़ेद और काले का मिलन हो गया आप तो उसका परिणाम देखिए ब्लैक एंड व्हाइट में .ये खेल बहुत बड़ा है इसलिए इसमें खिलाड़ी भी बड़े-बड़े हैं.हजारों -लाखों का नहीं लाखों-करोड़ों का या उससे भी बड़ा खेल है.एक प्रसिद्ध गीत का अंश है – काजल की कोठरी में कितना जतन करो, काजल का दाग भाई लागे ही लागे है. लगा…दाग लगा. काजल का नहीं भाई, कोयले का. पर इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता. ये पुराने बेशर्म हैं सचमुच किसी दाग-वाग का इन पर कोई असर नहीं पड़ता.इतना सब होने पर भी कह रहे हैं कि बोफोर्स की तरह लोग कुछ समय बाद कोयले को भी भूल जाएँगे.दाग अच्छे हैं, बाबा मौनी हैं न.
कोयले की कालिख की परतें उघड़ी तो पता चला कि कई बड़े सफेदपोश कोयले की दलाली में हाथ काले कर रहे थे.देश की प्राकृतिक सम्पदा इनके बाप की जागीर बन गयी है कि जिसे चाहो जैसे चाहो लुटा दो. क्या खूब! ये सारे फैसले जनहित में होते हैं. बिसनसमैन, नेता या उनके परिजन भी तो जन ही होते हैं, तो इनका हित भी तो जनहित ही हुआ न भाई. माल तो दोनों तरफ से और दोनों हाथों से लुटा है. जनता को तमाशा दिखाने के लिए किसी ने संसद रोकी, किसी ने ईंट का जबाब पत्थर से देने और सड़क पर उतरने की चेतावनी दी. ये सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाने की साजिशें हैं. बड़ा माल तो बड़े लोगों में ही मिल बांटकर खाया जाता है. वरना यह कैसे संभव है कि इनकी ही नाक के नीचे सुड-सुड होती रही और इनको अब पता चला. इससे क्या पता चलता है? या तो ये बहुत ही भोले हैं या फिर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इन्होने जानबूझकर आँख बंद कर ली थी. सबको पता है कि जिसका मौका लगा उसी ने कालिख से अपना हाथ पालिश किया.जो खा रहा था और पकड़ा गया वो तो चोर है, जो खाकर हजम कर गया, वो बड़ा आदमी हो गया.
ये खेल कोई नया थोड़े ही है बस लोगों को अब इसका पता चला है. पार्टियों के फंड और नेताओं की धन-सम्पदा की प्रगति की रफ़्तार को देखकर कुछ तो समझ आता ही होगा. चंदे में भी धंधा है.चंदे के नियम भी इनकी अपनी सुविधा के हिसाब से हैं.कहते रहो पारदर्शिता-पारदर्शिता? ये दूरदर्शिता के साथ माल पार करते रहते हैं और पारदर्शिता आपके लिए है.एक गरीब, मजदूर, नौकरीपेशा या छोटे व्यवसाई के लिए ही पारदर्शिता होती है.इनका बस चले तो उसकी आंतो को भी बाहर निकाल कर पारदर्शी बना दें.
जब बहुत हो-हल्ला हो गया तो फिर इन्होने दूसरे राग छेड़ दिए और जनता को बेवकूफ बनाने और बाँटने में लग गए. प्रमोशन में आरक्षण का बबाल निकाल दिया, कुछ लोग उसमें लग गए. गैस और डीजल के बहाने से आग लगा दी, ऍफ़ डी आई का सुर छेड़ दिया तो कुछ लोग इसके बारे में सोचने लगे. लोगों का किसी तरह ध्यान बांटा जाए बस घोटाले की न सोचें. जनता बड़ी भुलक्कड़ है कुछ ही दिन में सब भूल जाएगी और चोरों में कम चोर को चुनने के लिए बाध्य हो जाएगी.आज के ईमानदार कल यही काम करने लगेंगे तो जनता क्या कर लेगी? किसी को डर ही नहीं है जितना चाहो भ्रष्टाचार कर लो-जितना चाहो लूट लो,मरने के लिए निरीह जनता तैयार है.अंग्रेज बांटते थे और राज करते थे आज ये काले अंग्रेज बांटते हैं और राज कर रहे हैं .कमी जनता की भी है कि ये कितनी आसानी से बंटने को तैयार रहती है.
सत्ता की ताकत है जो विरोध करेगा अन्दर कर देंगे. अन्दर जाने के बाद अपने भी मुंह मोड़ने लगते हैं. सो अन्दर जाने से अच्छे -अच्छे डरते हैं .ये व्यवस्था का ही तो कमाल है कि एक सीधे-भले आदमी को पकड़कर अंदर कर दो उसकी जमानत करने में नानी याद आ जाएगी. वहीं एक भ्रष्ट या रसूख वाले को बंद करके दिखाओ तो तमाम सिफारिशें आ जाएंगी, और जमानत भी हो जाएगी.लाठी का बड़ा दुरूपयोग हो रहा है.यह उसी के सर पर बज रही है जो विरोध का साहस कर रहा है.जो भ्रष्टाचार की नदी में हाथ साफ कर रहा है,लाठी उसी का सहारा बन गई है.भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट अफसरों में गजब की जुगलबंदी है.इसी जुगलबंदी का परिणाम है कि भ्रष्ट अफसर मलाईदार पदों को प्राप्त कर, अपने आका के उपकार का बदला चुकाते हैं और घोटाले होते रहते हैं.
ममता ने कुर्सी तो हिलाई फिर भी कुछ नहीं होने वाला.दरअसल हर कोई सरकार से अपने समर्थन की कीमत वसूलने को तैयार है.जिसके जितने सांसद उसका उतना भाव, भाई आगे भी तो चुनाव लड़ना है न. राज्यों के छत्रप अपने-अपने राज्यों के लिए पैकेज चाहते हैं, बस पैकेज मिल जाय और सारे गुनाह माफ़.ऐसी हालात में ईमानदारी से कोई जाँच तो कभी हो ही नहीं पाएगी.बस छोटी मछलियाँ ही फसेंगीं,सही पता तो कभी नहीं चलेगा कि किस-किस ने कोयले से कितना मुंह काला किया है.

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