Parivartan- Ek Lakshya
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कैसा सन्यास ?
जीवन क्यों हो उदास ?
संभावनाएं क्यों रूठें ?
आशाओं में –
कोपलें क्यों न फूटें ?
इन्द्र धनुष की कोर पर बैठा –
ऐसा आनंद
जिसने मोड़ लिया हो
मानवता से नाता,
मुझे नहीं सुहाता .
आँखें मूँद कर,
आसन पर कूद कर,
अंतस का कोलाहल
मुझे नहीं सुनना .
निठल्ला ज्ञान,
आश्वासन का मोक्ष दान ,
जो बनाता हो
मानवता को –
रूढ़ियों का दास,
पाखंडी,उदास,
मुझे नहीं गुनना .
लो उदय हुआ
पूरब से
विकास का सूरज,
मिला –
धरा को
स्वच्छता का दान ,
स्वस्थता का वरदान ,
जीवन –
ध्वनित हुआ
अरमानों ने –
गगन छुआ .
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