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आस्था का वरण

Parivartan- Ek Lakshya
Parivartan- Ek Lakshya
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एक के बाद एक
लेकर जन्म
दी है हमने
समय श्रृंखला को गति
अन्यथा कौन जानता
क्या है
काल की प्रणति ।
खिसक जाती है ज्यों
मुट्ठी की रेट सी
हाथों से जिंदगी
काश
खिसक जाती रिक्तता
जीवन से यूँ ही
फिर कोई क्यों करता
किसी को बंदगी ।
अतृप्ति
खोजती रह जाती जब
संतृप्ति का स्रोत
और
नही हो पाती
उसकी महिमा से
ओतप्रोत
तब चूमती है बिबस्ता
गुरुता के चरण
और छोड़ कर
पद,प्रतिष्ठा का अहम
यश ,वैभव का वहम
करती है
श्रावकों सी
आस्था का वरण ।

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