Parivartan- Ek Lakshya
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‘पौ फटी
हुआ रजनी का
वक्ष विदीर्ण,
भयभीत कलुष करने लगा
अस्तित्व की फरीयाद।
लंगडे ने सुनी
अंधे की पुकार
और धंधा कलुष का
लेने लगा विस्तार। ’
रात,
कितनी भी काली हो,
घनी हो,
अंधीयारी हो
अंधेरे लाख साजिश रचें,
फुसलायें, छटपटायें,
सत्ता सत्य की
प्रेम की
अपनत्व की
करती है जब
अंतस में प्रवेश,
गूंजता है जब
चहूंदिस
एक ही संदेश,
आओ गढें
अपना भारत, सबका भारत
सबके साथ सबका विकास।
देश गढता है जब
विकास की परिभाषा,
विश्व पढता है जब
मैत्री की भाषा,
प्रहरी समय के रहते हैं
तब सजग
ढहने देते हैं
जाति वर्ग की दीवारें,
विरामित करते हैं
विभाजन की तलवारें,
उगता है तब
सुख का सूरज,
खिलता है
हृदय कमल
और ध्वजा विकास की
फहराती रहती
अनवरत…….
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