samanvay
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हम वंशज है अपने वतन पर मिटने वालों के,
खून खौल उठ्ता है वतन के टुकडे करने वालो.पे!१
माँ के टुक्डे करवाने वालो के लिए सबक ज़रूरी है,
हम संविधान अनुयायी,हमारी कोई नही मज़बूरी है!
भगत सिह,राजगुरू,सुख्देव की कुर्बानी पूँछ रही है?
क्या वो जे०एन०यू० मे, देश्द्रोहियों से जूझ रही है?
ध्यान रहे स्वतंत्रता उनके पुरुखों की ज़ागीर नही,
सुभाष के”सपनो का भारत”,मिट्टी की तामीर नही!
एक और विभाजन,किसी शर्त हमको मंज़ूर नही,
“कश्मीर हमारा है”.सियासत का कोई दस्तूर नही!
कहो पडोसी से-बाज आए अपनी बेज़ा हरकत से,
बांग्लादेश मे जो हाल किया,भूल गये फ़ुरकत से?
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा,आगरा२८२००७
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