samanvay
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हर चेहरे पर खुद खुदा ने लिख दिया है,
जो डर औ दब कर मरा,वो कब ज़िया है?
ज़हन मे बिठा, फ़ख्र से ज़िन्दगी जिएगे
गर्भ मे क्यूँ मरें,हमने क्या-क्या किया है?
कभी माँ,बहन,और कभी बनकर अर्धांगनी,
दुख-दर्द औ तेरी बलाओं को खुद लिया है!!
सन्तान-सन्तान मे फ़र्क खुदा ने तो नही,
खुदा के कुछ खुदगर्ज़ बन्दों ने किया है!!
माँ को मिले हक बच्चो की पैदाइश का,
पुरुषो ने हमेशा शोषण उसका किया है!!
कभी गरीबी की दुहाई,कभी मँहगी सगाई,
पर बेटे के ज़नम पर भोज़ ही दिया है!!
जागो माँ, बहन और जहाँ की बेटियो,
छीन लो पुरुषों से,जो खुदा ने दिया है!!
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज ,सिकन्दरा,आगरा-२८२००७
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