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नवसृजन

samanvay
samanvay
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धीरे-धीरे पुरवईया सी बहने लगी,
चन्द दिनों मे ही,मै सब सहने लगी!
पराया समझा था जिन्हे मैने कभी
मन से उन्हे ,अब अपना कहने लगी!! धीरे-धीरे पुरवईया ….
घर से घबराते हुये,हुई थी, मै विदा,
बहन और सखियाँ,छोड दी थी सदा
और अश्रुपूरित नयनो मे बहने लगी!! धीरे-धीरे पुरवईया ….
है प्यार का संवेग या कुछ मज़बूरियाँ,
घट रही है क्यूँ आज बाबुल से दूरियाँ?
पीर भी अपनी सब उनसे कहने लगी!! धीरे-धीरे पुरवईया …
जीवनदाता भी क्यूँ पराये से लगने लगे?
पँख फ़ैलाकर नव स्वप्न क्यूँसज़ने लगे?
प्रेम मे उनके मै कैसे अब बहने लगी?धीरे-धीरे पुरवईया ….
नियति है हर बालिका की बस यही?
मान लूँ क्या सृष्टि की संरचना सही?
नवसृजन को ही परिवार कहने लगी!!धीरे-धीरे पुरवईया ….
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा,आगरा २८२००७

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