samanvay
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गर मुझे उसके ज़ज़्बात का अहसास होता,
वो मेरे नज़दीक होती,मै उसके पास होता!!
ख्वाबों की तामीर को न इस कदर बनाते,
न गिरने की आहट होती,न विश्वास होता!!
काश मेरे ज़ज़्बात,मेरे आईने से परखे होते,
न उसे कोई शक,न मै यूँ बदहवास होता!!
पर अब अफ़सोस करने से भी क्या फ़ायदा?
न मिलते,न गिले-शिकवों का अहसास होता!!
सुन अपनो से ही गिले शिक्वे हुआ करते है,
गर मानते गैर ,तो तू क्यूँ अपना खास होता!!
बोधिसत्व कस्तूरिया२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा,आगरा-२८२००७
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