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फिल्म पत्रकारिता में ऐसे दिन कम मिलते हैं। पिछले बुधवार 20 जनवरी को संयोग ऐसा बना कि पहले अमिताभ बच्चन और फिर शाहरुख खान के इंटरव्यू का सुयोग बना। हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय स्टारों से मिलना हमेशा सुखद रहता है। हम पत्रकारों को यह सुविधा मिलती रहती है कि हम कभी अकेले तो कभी भीड़ में उनसे बातें करते रहें। उनकी बातें आप तक पहुंचाते रहें। इस प्रक्रिया में केवल जरूरी बातें ही छप पाती हैं। बाकी हमारे अनुभव का हिस्सा बन जाती हैं। सभी कहते हैं कि मैं उन अनुभवों के बारे में लिखूं, लेकिन नौकरी करते हुए सभी खट्टे-मीठे अनुभव लिख पाना नामुमकिन है। कोई बात उन्हें नागवार गुजरी तो प्रोफेशनल नुकसान हो जाएगा। अब आप इसे ईमानदारी से खिसकना मानें तो आप की मर्जी।
बहरहाल, आज की चर्चा शाहरुख के लिए। बांद्रा के बैंड स्टैंड पर खड़ा उनका आलीशान बंगला मन्नत उनके स्टारडम की गवाही देता है। ऊंची चहारदीवारी और ऊंचे गेट के पीछे अपने किंग खान रहते हैं। किंग खान के किंगडम में पूरी दुनिया समा चुकी है। शाहरुख के प्रशंसक दुनिया के हर कोने में हैं। खास कर जर्मनी में तो कुछ ज्यादा ही हैं। वे भावुक हैं। वे शाहरुख खान की फिल्में देख कर रोते हैं, क्योंकि वे राहुल की तकलीफ को बगैर शब्दों और संवाद के भी समझ लेते हैं। शाहरुख को मैं दंभी मानता हूं। यह उनका गुण है। इसे आप सकारात्मक गुण मानें। बहुत कम ऐसे स्टार हैं, जो अपना प्रभाव जानते हैं और उसे स्वीकार करते हैं। स्वाभिमानी शाहरुख का आत्मबल स्ट्रांग है। वे इसे अपने मिडिल क्लास बैकग्राउंड की देन मानते हैं। उन्हें इस बात का गर्व है कि साधारण पृष्ठभूमि से निकलने पर भी अपनी मेहनत से वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं। गौर करें तो खान त्रयी के बाकी दोनों खान फिल्म इंडस्ट्री के हैं।
उस दोपहर मैं निश्चित समय पर उनके दफ्तर पहुंच गया था। मन्नत के पिछले हिस्से में उन्होंने दफ्तर बना रखा है। उसी के सेकेंड फ्लोर पर गेट से मुझे भेजा गया। वहां पहुंचने पर मालूम हुआ कि कुछ पत्रकारों से वे घिरे बैठे हैं और पिछले एक घंटे से उनके हर सवाल के जवाब दे रहे हैं। सभी ने उनके साथ तस्वीरें भी खिंचवाईं। मुझे बताया गया कि थोड़ा वक्त लगेगा, क्योंकि तीन और इंटरव्यू लाइन अप हैं। वे टीवी के इंटरव्यू हैं। उनमें से एक कोयल पुरी का भी इंटरव्यू था।
शाहरुख का दफ्तर खुला और लंबा-चौड़ा है। आम तौर पर हिंदी फिल्मों की हस्तियों के दफ्तर में एक किस्म की घुटन महसूस होती है, जो बंद माहौल और एसी की वजह से ज्यादा ठंडी और मारक लगती है। शाहरुख खान का खुद का दफ्तर और बाकी कमरे भी खुशगवार लगते हैं। एक पॉजीटिव एनर्जी है उनके ऑफिस में। एक तो सारे स्टाफ प्रसन्नचित्त और चौकस नजर आते हैं। दूसरे शायद उन्हें ऐसा निर्देश दिया गया है कि आगंतुकों से बेजा सवाल न पूछे जाएं और न उन्हें यह एहसास होने दिया जाए कि वे जिस से मिलने आए हैं, उससे कमतर हैं। ऐसा न लगे कि वे जबरन आ गए हैं। माफ करें, ज्यादातर फिल्मी हस्तियां आप के अंदर एहसास-ए-कमतरी भरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं।
शाहरुख शाम में खाली हुए और मेरा इंटरव्यू आरंभ ही होने वाला था कि गौरी दिखीं। गौरी उनकी पत्नी हैं और जैसी तस्वीरों में आप उन्हें देखते रहे हैं, उनसे बिल्कुल भिन्न मुद्रा और ड्रेस में। उन्होंने ट्रैक शूट का पजामा और टी शर्ट पहन रखा था। कोई मेकअप नहीं, कोई एक्सेसरी नहीं। मुझे बताया गया कि शाहरुख ने दिन का खाना मिस किया है। अगर आप इजाजत दें तो वे खाकर आ जाएं। गौरी उन्हें बुलाने आई हैं। मेरी तरफ से शाहरुख की सेहत के लिए यह खयाल रखना लाजिमी थी और फिर यहां तो गौरी भी थीं। सचमुच, कितने सुखी हैं शाहरुख। शाहरुख ने जाने के पहले खुद भी बताना जरूरी समझा और लगभग अनुमति लेने की मुद्रा में पूछा, ‘मैं खाकर आ जाऊं?’ वे आराम से कह सकते थे या किसी से कहलवा सकते थे कि आप वेट करो, वे खाने गए हैं। छोटी बातों में ही व्यक्ति का बड़प्पन दिखता है।
वे जब लौट कर आए और बातें शुरू हुईं तो ‘माय नेम इज खान’ पर हम तुरंत नहीं पहुंचे। मुंबई की ट्रैफिक, रोज की दिक्कतें और कई गैरजरूरी बातें… इन सभी बातों में शामिल शाहरुख खान एक आम नागरिक की तरह अपनी तकलीफें और आब्जर्वेशन शेयर कर रहे थे। फिर तो वे लगातार बोलते गए। मैं बता दूं कि शाहरुख खान हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के उन चंद स्टारों में से एक हैं, जिनकी बातें रोचक होती हैं। वे या तो बात नहीं करते और अगर करते हैं तो ऐसा लगता है कि कुछ छिपाने की कोशिश नहीं करते। हमारी बातचीत लंबी से और लंबी होती गयी। साढ़े आठ बजे हमने बतियाना शुरू किया था। दस बज गए तो फिर गौरी आ गई। उन्होंने धीरे से दरवाजा सरकाया और पूछा, ‘और कितनी देर?’ शाहरुख ने ही जवाब दिया दस-पंद्रह मिनट…
दस-पंद्रह मिनट से ज्यादा हो गया तो सुहाना आ धमकी। ओह हो… सुहाना की एंट्री और उसका ड्रामा… उस पर फिर कभी…
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