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क्‍या आप अपने बेडरूम में झांकने देंगे?

वाया बीजिंग
वाया बीजिंग
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फराह खान ‘तीस मार खां’ नाम की एक‍ फिल्‍म बना रही हैं। अभी वह बन रही है। हम यहां दूसरे तीस मार खां की बात कर रहे हैं। वे फिल्‍म नहीं,व्‍यक्ति हैं। फिल्‍म निर्देशक हैं। अपने दिबाकर बनर्जी। उनकी ‘खोसला का घोंसला’ और ‘ओय लकी लकी ओय’ तो आप ने देखी होगी। दोनों ही फिल्‍मों में मामूली कलाकार थे, लेकिन भाई क्‍या फिल्‍में थी? पूरा मजा आया। कौन कहता है कि केवल स्‍टारों से फिल्‍में चलती हैं। इन दोनों फिल्‍मों के पीछे दिबाकर बनर्जी का दिमाग चला। उस दिमाग की नई कारस्‍तानी है ‘लव सेक्‍स और धोखा’। ‘लव सेक्‍स और धोखा’ आम नागरिक की निजी जिंदगी में झांकते समाज के मनोविज्ञान को तीन कहानियों के माध्‍यम से फिल्‍मांकित करती है। इस फिल्‍म का लेकर इिबाकर के कई दावे हैं।
दिबाकर बनर्जी पहले से आगाह कर रहे हैं कि उनकी फिल्‍म का ग्रामर नया है। हो सकता है दर्शकों को झटका और सदमा लगे। बेहतर होगा कि पहले किसी भरोसेमंद दोस्‍त या रिश्‍तेदार या परिचित को देख आने दें। पहला झटका उसे झेलने दें। ‘लव सेक्‍स और धोखा’ वास्‍तव में हम सभी में मौजूद दृश्‍यरतिकता ( vpyerism) को उद्घाटित करती है। हम अपनी उत्तेजना और स्‍फुरण के लिए किसी और के बेडरूम में झांकते हैं, लेकिन क्‍या अपने बेडरूम में किसी और का झांकना हम बर्दाश्‍त करेंगे? नहीं न! दिबाकर बनर्जी ने समाज में तेजी से बढ़ रहे देखने-दिखाने के प्रकोप के बारे में बताया है। और कहीं न कहीं हमारे दर्द को जाहिर किया है।

अभी मैं ये सारी बातें दिबाकर बनर्जी से हुई बातचीत के आधार पर लिख रहा हूं। यह कोई प्रिव्‍यू नहीं है और न ही फिल्‍म देखने का निमंत्रण है। हां, दिबाकर बनर्जी ने निश्चित ही शिल्‍प और कथ्‍य के स्‍तर पर नया काम किया है। यह फिल्‍म हमारी संवेदनाओं को झकझोर सकती है। बता सकती है कि हम अपनी दृश्‍यरतिकता में किस प्रकार दो व्‍यक्तियों के अंतरंग पलों को भंग करते हैं। हम नहीं जानते और समझते कि चंद सेकेंड और मिनटों के आगे-पीछे रतिलीन व्‍यक्ति किसी स्थिति-परिस्थिति में थे। हमारे लिए तो बस वे ही क्षण मायने रखते हैं, जो मोबाइल से लेकर सिल्‍वर स्‍क्रीन तक पर हमारे सामने चलते-फिरते दिखाई पड़ते हैं।

‘लव सेक्‍स और धोखा’ की तीन कहानियों में से एक में राहुल फिल्‍म स्‍कूल का छात्र है। वह अपनी डिप्‍लोमा फिल्‍म बना रहा है। कुछ शौकीन कलाकारों को लेकर डिजिटल कैमरे से बालीवुड की प्रचलित लव स्‍टोरी को सीमित बजट में शूट करता है। फिल्‍म के आडिशन के दौरान ही वह श्रुति से प्रेम कर बैठता है। वही उसकी हीरोइन बन जाती है। फिल्‍म की और निजी जिंदगी की भी।
दूसरी कहानी में आदर्श एक माल में सेक्‍युरिटी कैमरे लगाता है। वह कर्ज से दबा है। आसानी से पैसे हासिल करने के लिए वह सीसीटीवी कैमरे के आगे नंगी हरकतें करने के लिए तैयार हो जाता है।
तीसरी कहानी में प्रतिबद्व पत्रकार प्रभात मीडिया के बदले माहौल में आत्‍महत्‍या की कोशिश कर रही नैना की मदद से लोकी लोकल नामक पाप स्‍टार का स्टिंग आपरेशन करता है।

राहुल, आदर्श और प्रभात हमारे बीच के ही लोग हैं, जो मजबूरी, आजीविका, प्रलोभन और उद्दीपन में दृश्‍यरतिकता के शिकार होते हैं। उनके माध्‍यम से हम अपनी विकृतियों और विसंगतियों को भी समझ सकते हैं। यह फिल्‍म आप की सोच और रवैए को बदल सकती है। क्‍या आप तैयार हैं ???

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