DIL DHADAKNE DO
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कल एक ग़ज़ल सुन रहा था “कभी ख़ुशी से ख़ुशी कि तरफ़ नहीं देखा, तुम्हारे बाद किसी और की तरफ़ नहीं देखा।” कल बहुत याद आयी तुम्हारी। तुम्हें याद है जब शादी के बाद मुझसे पहली बार मिली थी, माँ के अलावा किसी और ने पहली बार चूमा था मुझे। तुम्हें याद है जब तुमने दोनों हाथों में मेंहदी लगा रखी थी, मैंने अपने हाथों से खाना खिलाया था तुम्हें और बदले में तुमने मेरी उँगलियाँ काट ली थी और खिलखिलाकर हँस पड़ी थी। तुम्हारी वो शरारतें बहुत याद आती हैं। कल नहाते वक़्त ग़ुसलख़ाने की दीवार पर नज़र गयी जहाँ ढेरों बिन्दियाँ चिपकी थीं, तुमने ही लगा दी होगी कभी नहाते वक़्त। उन बिन्दियों की क़तारों ने सितारों की शक्ल ले ली है सोचता हूँ तुम होती तो एक चाँद भी होता।
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