Menu
blogid : 1147 postid : 1359053

क्या यशवंत सिन्हा सचमुच भीष्म पितामह हैं?

ब्रज की दुनिया
ब्रज की दुनिया
  • 707 Posts
  • 1276 Comments

मित्रों, पता नहीं क्यों हम अपने संस्कृत और तदनुसार अपनी संस्कृति से कटते जा रहे हैं. कदाचित इसी का परिणाम होता है कि हम कई बार अपने शास्त्रों से गलत उदाहरण दे जाते हैं. हो सकता है कि भारत के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा अंग्रेजी के विद्वान हों लेकिन भारतीय वांग्मय के बारे में उनकी जानकारी शून्य है यह उन्होंने अपने बारे में गलतफहमीयुक्त उदाहरण देकर साबित कर दिया है.


yashwant sinha


मित्रों, आप सभी जानते हैं कि यशवंत सिन्हा जी ने पिछले दिनों खुद को भीष्म पितामह घोषित किया है. तो पहले बात कर लेते हैं इसी बात पर कि भीष्म थे कौन और उन्होंने क्या-क्या किया था. भीष्म हस्तिनापुर के राजा शांतनु के पुत्र थे जिनका जीवन महान त्यागों से भरा पड़ा है. किशोरावस्था में उन्होंने पिता की ख़ुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की और सिंहासन का परित्याग कर आजीवन हस्तिनापुर की राजगद्दी की सेवा करने का व्रत लिया.


मित्रों, बाद में उनको अपनी प्रतिज्ञाओं के कारण भारी मानसिक क्लेश झेलने पड़े, यहाँ तक कि पुत्रवधू का चीरहरण तक देखना पड़ा लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी. महाभारत की लडाई में भीष्म को अधर्म के पक्ष में सेनापति बनकर युद्ध करना पड़ा. उनकी अपराजेयता से परेशान होकर पांडवों द्वारा पूछने पर धर्मविजय के निमित्त उन्होंने स्वयं अपनी पराजय का उपाय पांडवों को बता दिया. कल होकर उनका सबसे प्रिय पौत्र अर्जुन उनके समक्ष उपस्थित तो हुआ लेकिन अपने आगे शिखंडी को ढाल बनाकर.


मित्रों, शिखंडी के पीछे से वाण चलाकर अर्जुन ने उनके रोम-रोम को अपने पैने वाणों से छेद दिया लेकिन महात्मा भीष्म इस भीषण दर्द को चुपचाप सहते रहे उत्तर नहीं दिया. बाद में शरशैया पर भी तब तक जीवित रहकर ईच्छा मृत्यु के वरदान के बावजूद असह्य पीड़ा को सहते रहे जब तक हस्तिनापुर का सिंहासन चहुँओर से सुरक्षित न देख लिया.


मित्रों, तो ऐसे महात्मा भीष्म से अपनी तुलना करके मियां मिट्ठू बन रहे हैं वयोवृद्ध यशवंत सिन्हा. शायद उनको पता नहीं कि सिर्फ उम्रदराज हो जाने से ही कोई इतना महान नहीं हो जाता कि उस भीष्म पितामह से अपनी तुलना करने लगे जिनके आगे भगवान श्रीकृष्ण का सिर भी श्रद्धा से स्वतः झुक जाया करता था. आईएएस की नौकरी समय से पहले छोड़ने के सिवाय ऐसा कौन-सा त्याग किया है यशवंत बाबू ने और क्या ऐसा करनेवाले वे एकमात्र व्यक्ति हैं? ऐसा उन्होंने किया भी तो अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए किया न कि देशहित या देशसेवा की भावना से आप्लावित होकर. पहले चंद्रशेखर के साथ चिपके फिर भाजपा में आ गए.


मित्रों, आपको याद होगा कि जब यशवंत चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री थे तब उनकी महान आर्थिक नीतियों के चलते भारत के खजाने की हालत ऐसी हो गई थी कि भारत को ४७ टन सोना गिरवी तक रखना पड़ा था. वाजपेयी सरकार में जब वे वित्त मंत्री थे तब उन पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगे. उन्होंने कथित तौर पर मारीशस के रास्ते भारी मात्रा में अपने कालेधन को सफ़ेद किया था. उनका कार्यकाल बहुत जल्द इतना विवादित हो गया था कि उनको वित्त मंत्री के पद से हटाना पड़ा. फिर भी भाजपा ने उनका मान रखा और मंत्रिमंडल में बनाए रखा. विदेश मंत्री के रूप में उनकी उपलब्धि क्या रही शायद वे ही बेहतर जानते होंगे.


मित्रों, बाद में वे कई बार हजारीबाग से सांसद बने लेकिन अपने बल पर नहीं पार्टी के नाम पर? क्योंकि सांसद बनकर भी वे ठसकवाले आईएएस ही ज्यादा रहे और जनता से आयरन कर्टन सरीखी दूरी बनाए रखी. पिछली बार अपनी जगह बेटे को खड़ा किया जो इन दिनों संघ सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं. श्री सिन्हा का आरोप है कि इन दिनों भारतीय अर्थव्यवस्था का चीरहरण हो रहा है और वे इसे चुपचाप नहीं देख सकते.


सिन्हा जी भारत के इतिहास में पहली बार तो भारत की अर्थव्यवस्था को महान और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने की निःस्वार्थ कोशिश हो रही है और आप राग विलाप आलाप रहे हैं? जीडीपी की वृद्धि-दर इस तिमाही में घटी है तो अगली में बढ़ जाएगी इसके लिए उपाय किए जा रहे हैं. रोजगार भी बढ़ेगा बस थोडा-सा धैर्य रखिए ये अभूतपूर्व एफडीआई जो आ रही है कोई अंचार डालने के लिए नहीं आ रही . सिन्हा जी या तो आपको अर्थव्यवस्था की बुनियादी समझ ही नहीं है या फिर आप भी उस शत्रु-मंडली का हिस्सा बन गए हैं जो देश में भ्रष्टाचार की जड़ों को बचाने और चीन-पाकिस्तान के साथ मिलकर देश और मोदी सरकार को कमजोर करने की इन दिनों जी-तोड़ कोशिश कर रही है.


मित्रों, दूसरी बात की सम्भावना ही ज्यादा है कि यशवंत सिन्हा जी जानबूझकर उस कांग्रेस की गोद में जा बैठे हैं जो स्वयं को भ्रष्टाचार का पर्याय बना चुकी है. पता नहीं उनकी ऐसी क्या मजबूरी है कि जीवन की सांध्य-बेला में कौरव-पक्ष और उसका अनाचार उनको ज्यादा प्रिय लगने लगा है?


मित्रों, देश की जनता एक लम्बे समय से राजनेताओं की अवकाशप्राप्ति की उम्र निर्धारित करने की मांग कर रही है जो उचित भी है. यूपीए सरकार के समय रक्षा मंत्री एंटोनी सेना की सलामी के दौरान ही बेहोश हो गए थे. इसी तरह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लाल किले पर झंडे की रस्सी ही नहीं खींच पाए थे. अगर मोदी जी ने राजनेताओं की अवकाशप्राप्ति की आयु अघोषित रूप से निर्धारित कर दी तो क्या गलत किया? नौकरीवाले रिटायर होते है तो नेता क्यों नहीं हों? फिर यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है कि वो किसको मंत्री रखेगा और किसको नहीं और किस मंत्रालय में रखेगा. क्या सिन्हा जी जबरदस्ती मंत्री बनना चाहते हैं? पता नहीं सच क्या है लेकिन इतना तो तय है कि सिन्हा जी को अपनी तुलना प्रातःस्मरणीय भीष्म पितामह से नहीं करनी चाहिए थी. कहाँ तो उन्होंने कुर्सी का त्याग किया था और कहाँ ये कुर्सी के लिए हस्तिनापुर के राजसिंहासन के ही नहीं बल्कि हस्तिनापुर के शत्रुओं से जा मिले हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh