मित्रों, दुष्यंत कुमार ने क्या खूब कहा है कि
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये.
मित्रों, याद करिए पीएम मोदी ने २०१४ में क्या-क्या वादे किए थे? उनमें से एक वादा यह भी था कि वे भारत को एक बार फिर से विश्वगुरु बनाएँगे और इसके लिए देश की शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करेंगे. मगर हुआ क्या? न तो देश की प्राथमिक शिक्षा के लिए ही और न ही उच्च शिक्षा की स्थिति में ही कोई परिवर्तन आया और न ही इस दिशा में कोई ऐसी योजना ही आई जिससे पता चले कि ऐसा करने की सरकार की कोई मंशा भी है. अलबत्ता जो शेष है उसे भी बर्बाद करने की मंशा जरूर झलक रही है.
मित्रों, यह किसी से छिपी हुई नहीं है कि देश की शिक्षा प्रणाली मर चुकी है और अब परीक्षा प्रणाली में परिणत हो चुकी है. उस पर कहर यह कि बोर्ड और विश्वविद्यालय समय पर और समुचित तरीके से परीक्षा भी नहीं ले पा रहे हैं. हर शाख पे उल्लू बैठा हो तो फिर भी गनीमत यहाँ तो हर पत्ते पर उल्लू बैठा है और गजब यह कि मीर साहब के शब्दों में
मित्रों, अब विश्वास किया है तो चाहे यह सरकार हर क्षेत्र में कॉलेजियम ला दे बर्दाश्त तो करना ही पड़ेगा.
दाग देहलवी साहब ने तो काफी पहले कहा था कि
ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया.
हंसा हंसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया तसल्लिया मुझे दे-दे के बेकरार किया.
Read Comments