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परीक्षा बच्चों की थी फेल सरकार हो गई

ब्रज की दुनिया
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हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,ऐसा आपने कम ही देखा होगा कि परीक्षा कोई और दे और फेल कोई और हो जाए। मगर बिहार में कुछ भी मुमकिन है। यहाँ ऐसे चमत्कार होते ही रहते हैं। पिछले साल परीक्षा बच्चों की थी और फेल अभिभावक हो गए थे। परंतु इस बार तो हद की भी भद्द हो गई। परीक्षा बच्चों ने दी और रिजल्ट निकला तो फेल सरकार हो गई थी।
मित्रों,पहले तो इस साल के उत्तीर्णता प्रतिशत ने सरकार को नंगा करके रख दिया। जब स्कूल में योग्य शिक्षक होंगे ही नहीं,पढ़ाई होगी ही नहीं तो बच्चे परीक्षा के समय लिखेंगे कहाँ से और फेल तो होंगे ही। सो इस साल चूँकि परीक्षा केंद्रों पर बाहर से मदद को पूरी तरह से रोक दिया गया था बच्चे बड़ी संख्या में फेल हो गए। लेकिन असली खुल्ला खेल दरबारी का पता तो तब चला जब लगभग अंगूठा छाप रूबी राय कला में और सौरभ श्रेष्ठ विज्ञान के क्षेत्र में टॉप कर गए और पत्रकारों द्वारा पूछे गए साधारण सवालों का भी जवाब नहीं दे पाए।
मित्रों,पहले तो जाँच समिति बनाकर मामले को रफा-दफा करने की सोंची गई। लेकिन जब मामला तूल पकड़ने लगा तो सरकार की चूलें हिलने लगीं। मुख्यमंत्री को स्वयं सामने आकर अपने परम प्रिय स्नेहिल लालकेश्वर प्रसाद सिन्हा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर आपराधिक जाँच का आदेश देना पड़ा। लेकिन सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर चलनेवाले खेल से क्या मुख्यमंत्री सचमुच पूरी तरह से नावाकिफ थे? क्या वे पहले से ही नहीं जानते थे कि लालकेश्वर दम्पति नटवरलाल है? अगर मुख्यमंत्री को पता था तो फिर लालकेश्वर को हटाकर पहले ही उसके,बच्चा राय और अन्य घोटालेबाजों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? और अगर पता नहीं था हालाँकि मानने को जी तो नहीं चाहता है फिर अगर मान भी लिया जाए तो क्यों पता नहीं था? फिर राज्य सरकार की खुफिया एजेंसियाँ क्या कर रही थीं?
मित्रों,जैसा कि मैंने पिछले पाराग्राफ में कहा कि मानने को जी नहीं कर रहा है तो इससे पीछे भी ठोस कारण हैं। बतौर पूर्व सीएम जीतनराम मांझी जी नीतीश सरकार एक लंबे समय से पैसे लेकर अफसरों का ट्रांसफर-पोस्टिंग कर रही है। फिर अगर प्रत्येक पद को पैसे के लिए बेचा जाता है तो फिर खरीददार जब गड़बड़ करेगा तो विक्रेता को सूचना मिलने पर भी नजरंदाज करना ही पड़ेगा। लेकिन अपने नीतीश बाबू का कातिलाना अंदाज तो देखिए। पहले तो कई दिनों तक पूरी तरह से चुप्पी साधे रहे। फिर अचानक प्रकट हुए और अपने ही आदमी और आदमी की औरत को नटवरलाल कहकर मामले से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया जैसे कि बेचारे को लता की तरह कुछ पता ही नहीं हो। मगर क्या दुश्शासन की गंध फैलने पर खबरों में शाहे बेखबर बन जाने मात्र से शासक अपराधमुक्त हो जाता है? क्या अपराधबोध से पूरी तरह से मुक्त होकर थेथर बन जाने से अपराध भी समाप्त हो जाता है? क्या जनता ने प्रदेश में अपराधवृद्धि होने पर उनसे और उनके डिप्युटी से यही सुनने के लिए उनके हाथों में सत्ता सौंपी थी कि ऐसा कहाँ नहीं होता है,किस राज्य में नहीं होता है?या फिर मामला उजागर होने के बाद जाहिर में यह सुनने के लिए कि किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा और भीतरखाने राजवल्लभ का बिछावन और तकिया डिटर्जेंट में धुलवा देने के लिए?
मित्रों,मैं कई साल पहले भी बिहार के बारे में लिए चुका हूँ कि मेरी सरकार खो गई है हुजूर! उस समय तो अराजकता का आगाज भर हुआ था। अब तो अराजकता अंजाम तक पहुँचने लगी है। उस समय सरकार यह नहीं कहती थी कि कहाँ नहीं हो रहा है कि झुठ्ठो खाली बिहार को बदनाम कर रहे हैं? नीतीश सरकार निश्चय-अनिश्चय हर मोर्चे पर फेल थी,फेल है और विषयवार फेल है। बात लीजिए हमसे और काम लीजिए हमारे पिताजी से की महान नीति पर चलने वाली सरकार के पास अगर उपलब्धि के नाम पर कुछ है तो सिर्फ दारू की खाली बोतल और सदियों से ताड़ी बेचकर जीविका उपार्जित करनेवाली पासी जाति की भुखमरी।

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