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मानवता को आईएस से बचाने को समय रहते एकजुट हो दुनिया

ब्रज की दुनिया
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हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों दुनिया एक बार फिर से उसी स्थिति में पहुँच गई है जिस स्थिति में वो आज से 76 साल द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले थी। तब जर्मन तानाशाह हिटलर यूरोप के एक के बाद एक देश पर कब्जा करता जा रहा था,लाखों यहुदियों का सामुहिक जनसंहार कर रहा था और दुनिया व यूरोप की तत्कालीन दोनों महाशक्तियाँ फ्रांस और इंग्लैंड उसके प्रति तुष्टिकरण की नीति पर अमल कर रहे थे क्योंकि उनको लग रहा था कि हिटलर ही सोवियत संघ के विस्तारवाद पर लगाम लगा सकता है। परिणाम यह हुआ कि हिटलर का लालच और साहस बढ़ता गया और जब फ्रांस और इंग्लैंड की नींद खुली तब तक काफी देर हो चुकी थी और दुनिया विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी थी।
मित्रों,आज भी इस्लामिक चरमपंथी संगठन आईएस एक के बाद एक देश पर कब्जा करता जा रहा है। रोजाना सैंकड़ों लोगों के सिर कलम कर रहा है। यजीदी महिलाओं व पुरूषों का बर्बरतापूर्ण सामुहिक बलात्कार किया जा रहा है,सेक्स गुलाम बनाया जा रहा है,यौनेच्छा पूरी करने से मना करने पर उनके बच्चों को मारा-पीटा जा रहा है,उनकी जांघों के बीच गरम पानी डाल दिया जा रहा है और अमेरिका और पूरी दुनिया मूकदर्शक बने हुए हैं क्योंकि सऊदी अरब आईएस का समर्थन कर रहा है।
मित्रों,हमारे शास्त्रों में राक्षसों के बारे में काफी कुछ लिखा गया है लेकिन यह आईएस तो हिटलर और राक्षसों से भी कई कदम आगे जा चुका है। आज आईएस से न सिर्फ विश्वशांति को खतरा है बल्कि मानवता व मानवीय मूल्यों को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। अतिशय पाशविकता व क्रूरता कभी भी मानवीय मूल्य नहीं हो सकते बल्कि दया,करूणा,संयम और क्षमा ही मानवीय मूल्य हो सकते हैं। ऐसे में अगर दुनिया ने एकजुट होकर समय रहते आईएस पर लगाम नहीं लगाया तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया पर राक्षसी संस्कृति के छा जाने का खतरा मंडराने लगेगा और तब तक काफी देर हो चुकी होगी ठीक उसी तरह जिस तरह से 3 सितंबर,1939 तक जर्मनी के खिलाफ फ्रांस और इंग्लैंड द्वारा युद्ध की घोषणा करने तक हो गई थी।
मित्रों,अगर ऐसा होता है वह निश्चित रूप से नितांत दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि आज दुनिया तृतीय विश्वयुद्ध को झेल सकने की स्थिति में नहीं है। विश्व-जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी गरीबी से जूझ रहा है। साथ ही आज दुनिया के देशों के पास सामुहिक विनाश के अस्त्र-शस्त्रों की संख्या 1939 के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इतनी ज्यादा कि दुनिया की पूरी मानव-आबादी को तीन-तीन बार पूरी तरह से समाप्त किया जा सके।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

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