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लालू और नीतीश में कौन चंदन और कौन सांप?

ब्रज की दुनिया
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मित्रों,पिछले दिनों रहीम कवि का एक दोहा बिहार के राजनैतिक जगत में काफी चर्चा में रहा। एक जिज्ञासु ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से सवाल पूछा था कि लालू जी के साथ रहकर आप किस तरह बिहार का विकास करवा पाएंगे। जवाब में लालू जी ने रहीम कवि का दोहा जड़ दिया कि जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग,चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग। जाहिर है कि न तो सवाल का और न ही जवाब का भाजपा से कोई लेना-देना था लेकिन जब नीतीश कुमार की तरफ से दोहे का भावार्थ बताया गया तो कहा गया कि उन्होंने तो भाजपा को सांप कहा था। खैर बिहार की जनता इतनी हिंदी तो जरूर जानती है कि वो समझ सके कि नीतीश जी ने किसको सांप और किसको चंदन कहा था।
मित्रों,वास्तविकता तो यह है कि लालू जी और नीतीश जी में से कोई भी चंदन नहीं है या चंदन कहे जाने के लायक नहीं है। तो क्या दोनों ही सांप हैं? जैववैज्ञानिक रूप से तो नहीं लेकिन अगर हम दोनों की करनी को देखें तो अवश्य ही दोनों सांप हैं। दोनों घनघोर अवसरवादी हैं। समय आने पर,अपने स्वार्थ के लिए दोनों किसी से भी हाथ मिला सकते हैं या किसी की भी गोद में जाकर बैठ सकते हैं। दोनों ने ही अपने-अपने समय में बिहार की जनता को धोखा दिया है,डँसा है।
मित्रों,आपको याद होगा कि 1990 के विधानसभा चुनाव लालू जी ने कांग्रेस-विरोध का नारा देकर जीता था। मगर हुआ क्या 1995 आते-आते लालू जी ने बिहार की जनता के जनादेश का अपमान करते हुए,बिहार की जनता को धोखा देते हुए उसी कांग्रेस के हाथ से हाथ मिला लिया जिसके खिलाफ लड़कर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे थे। मैं लालू जी को सलाह देना चाहूंगा कि कृपया बदली हुई परिस्थितियों में वे अपनी बड़ी बेटी मीसा का नाम भी बदल दें क्योंकि अब यह नाम शोभा नहीं देता है। अब यह नाम उनके कांग्रेस-विरोध को नहीं दर्शाता बल्कि उनकी अवसरवादिता का परिचायक बन गया है।
मित्रों,आपको यह भी याद होगा कि इन्हीं लालू जी के जंगल राज से बिहार को मुक्त करवाने के लिए मुक्तिदाता बनकर आए बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी लेकिन इन्होंने भी वही किया जो कभी लालू जी ने बिहार की जनता के साथ किया था यानि धोखा। ये श्रीमान भी आजकल उन्हीं लालू जी की गोद में जा बैठे हैं जो इनके बारे में कहा करते थे कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको नीतीश ने ठगा नहीं,या फिर नीतीश कुमार के पेट में भी दाँत है। हमने तो तब तक मुँह में ही दाँत देखे-सुने थे लालूजी ने पहली बार बताया था कि किसी-किसी के पेट में भी दाँत होते हैं। खैर,व्यक्तिगत रूप से नीतीश जी ने जिसको धोखा दिया सो दिया अब तो पूरे बिहार को भी इन्होंने नहीं छोड़ा। जनादेश का इतना बड़ा अपमान कि बिहार की जनता ने जिससे मुक्ति के लिए मत दिया उसी के हो बैठे! कथनी और करनी में इतना बड़ा फर्क! छोटा-मोटा नेता पाला बदले तो क्षम्य है लेकिन जिसको राज्य की जनता ने जिससे बचाने के लिए राज्य की बागडोर सौंप दी वही उसी कातिल की बाहों में समा जाए ऐसा तो सिर्फ फिल्मों में ही देखने को मिलता है। पहले भी इन दोनों ने एक-दूसरे को धोखा दिया है लेकिन इन्होंने साथ ही अपने-अपने वक्त में राज्य की जनता के जनादेश के साथ भी धोखा किया। अब आप ही बताईए कि दोनों में से कौन साँप है और कौन चंदन? अलबत्ता चंदन तो कोई नहीं है बल्कि दोनों-के-दोनों ही सांप हैं और वो भी दोमुँहा। दोनों के बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है वो भी रहीम कवि के समकालीन तुलसी बाबा की सहायता से कि
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
भावार्थ:-इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

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