अमावस्या पर दीप जलाने का पौराणिक प्रसंग जो भी हो,अध्यात्म की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है अग्यान का अंधेरा कितना ही घना क्यो न हो अंतस का एक दीप ही बहुत है- विवेकपूर्ण सम्यक दृष्टि ! आज एक सन्यासी का अधर्म-अन्याय पर विजय प्राप्त कर राजाराम के रुप में अयोध्या आगमन का दिन है तो एक सम्राट के सन्यासी होकर स्वयम पर विजय प्राप्त करने वाले भगवान महावीर का परिनिर्वाण का दिन भी है !
अध्यात्म की दृष्टि से दोनों भले ही दो ध्रुव पर खडे दिखाई दें लेकिन सत्य अहिंसा कर्म धर्म और मर्यादा के जो सिद्धांत मानव समाज को दिए हैं,वे बहुमूल्य हैं।इसीलिए ये महापुरुष भगवान के रुप में पूजित-प्रतिष्ठित हैं । इन महावीर सरीखे अवतरित मानवों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए दीपावली पर घर में दीप अवश्य जलायें, लेकिन अपने अंतस का दीप भी प्रकाशित हो,अमावस के अग्यान का अंधेरा मिटे और अंधेरे से उजाले की ओर अग्रसर हों,ऐसी शुभकामनायें ! साथ ही कामना करें कि देश से दुख दरिद्रता मिटे घर-घर सुख शांति सौभाग्य वैभव के दीप जलें।क्योंकि अकेले अकेले खुश भी तो नहीं हुआ जा सकता। इन अवतार पैगम्बर का पूजन अर्चन मात्र कल्याणकारी नहीं बल्कि इनके द्वारा स्थापित श्रेठ मानव मूल्य आदर्श मर्यादा का अनुसरण महत्त्व पूर्ण है ,ऐसी विवेकपूर्ण दृष्टि जागृत हो तभी जीवन सार्थक है,शृद्धा उद्देश्यपूर्ण है, अन्यथा कर्मकांड पाखण्ड है ,जो स्वयं को ही नहीं अपने भगवान को भी धोखा देने के समान है।
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