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“मधुमेह” संक्रमित सत्ता

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लोक सभा चुनाव में मोदी जी की अपूर्व सफलता और विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की सफलता ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की। मोदी जी के हर वादे पर जनता ने आँख मूँद कर भरोसा किया, गुजरात के विकास के पृष्ठभूमि पर, और यू पी ए सरकार में बढे “मधुमेह ” दोषों के कारण। केजरीवाल ने मोदी जी की कार्य शैली एवं मुलायम सिंह जी की रण शैली अपनाई, और भ ज प के अति आत्मविश्वाश के दोष का लाभ उठाया।

इन दोनों चुनावों के परिणामों ने तमाम राजनैतिक पार्टियों में खलबली मचा दी। अब तक तमाम राजनैतिक दल पारम्परिक रण शैली को ही अदल बदल कर प्रयोग करते रहे है। अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीति की छीना झपटी का तो ऐसा माहौल बन गया, की बहुसंख्यक समाज अपने अस्तित्व की खोज का मौन दर्शक बन गया। हमें मुफ्त के सामान हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं । परिणाम स्वरुप हमें अजगर की प्रबृति में ढाल देने की सत्ता पक्छ की पूरी पूरी कोशिश रहती है। खा लो और पड़े रहो।

वर्ष 2014 ने भारतीय राजनीति में “विकासः ” के मुद्दे को जन्म दिया। तमाम मुद्दे इस मुद्दे के आगे सुप्त पड़ गए। मोदी जी ने देश को एक नई दिशा दी। जनता अब तक सब कुछ समझती थी, महसूस भी करती थी, पर असहाय हो सोचती थी ” जाहे विधि राखे राम, ताहे विधि रहियो। ” मोदी जी ने जनता के मन में घुमड़ रही उम्मीदों को मूर्त रूप देने का विश्वास जगा दिया। इस विश्वास ने मौन जनता को जागरूक और मुखर बना दिया। अब जनता खोज रही है विकास की गति, भ्रस्टाचार मुक्त समाज, देश के काले धन की वापसी की समृद्धि, स्वछ, संपन्न, सबल एवं आत्मनिर्भर भारत, जहाँ हममे किसी भी प्रकार की आत्मग्लानी के भाव का कोई भी स्थान न हो। जहाँ हमें आरक्छण, ३/- किलो चावल की लाइन, मुफ्त कम्बल ,सड़ी ,टी. वी. आदि के लोभ से हम मुक्त रह सकें।

हम स्वाभिमान के साथ एक ऐसे भारत का सपना देखने लगे है, जहाँ भरपूर जीवकोपार्जन की संभावनाए हों, जहाँ सरकार आवाम के शिक्छा,स्वास्थ और सुरक्छा के प्रति पूरी – पूरी जिम्मेदार हो, और जनता के प्रति प्रति पूरी – पूरी जवाबदेह हो। जहाँ अवाम सुखद आजादी को महसूस कर सके, जन ,गढ़ ,मन को जी सके। जहाँ भारतीयता ही हमारी मात्र पहचान हो, और हम सब को इस पहचान पर नाज हो।
अब समय आ गया है वादों को मूर्त रूप में बदल कर दिखाने का। इस का निर्णय हम में से आखरी ब्यक्ति की संतुस्टी से ही हो सकेगा।यदि ऐसा न हो सका, किंन्ही भी कारणों से, तो जनता निराश हो जायगी, और परिणाम सत्ता को भोगना पड़ेगा। हाँ अब, एक बात की तो गैरन्टी दिखने लगी है, की “मधुमेह ” से सत्ता को अब विपक्छ ग्रसित होने नहीं देगा, वे सत्ता के लिए “इंसुलिन” रूप में सदा ही बने रहेंगे, यदि उंन्हें अपना वजूद बचा कर रखना है तो।

ये लक्छण देश, समाज के सुखद भविष्य के लिए शुभ माने जा सकते है.

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