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भारत पाकिस्तान प्रकरण

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पाकिस्तान और उसकी हरकते आज देश में एक गंभीर चर्चा का विषय बनी हुई है। सीमा पर लगातार हो रही गोलीबारी, खुद रही सुरंगे और आतंकवादियों की हो रही घुसपैठ ने देश में चिंता का माहोल बना दिया है। इस गोलीबारी में लगभग हर रोज हमारे सैनिकों यवम नागरिकों के हताहत होने व मारेजाने की खबरें मिल रही है। इस छेत्र में दहसत से नागरिकों के छेत्र से पलायन की प्रक्रिया भी लगातार चल रही है। सीमाछेत्र पर सारा जनजीवन अस्त व्यस्त हो चला है। यह एक ऐसे युद्ध की स्थित बन गयी है,जिसे हम युद्ध होते हुए भी युद्ध नहीं कह सकते।

पाकिस्तान पिछले 25 सालों से इस प्रक्रिया को सक्रिय रूप एवं निर्वाध रूप से अमल में ला रहा है। पाकिस्तान यह जनता है, की उसके खिलाफ हिंदुस्तान केवल और केवल विरोध प्रदर्शन के अलावा कुछ भी कर सकने की स्थित में नहीं। युद्ध के बारे में हिंदुस्तान सोच नहीं सकता, कियोंकि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है, और युद्ध के अलावा किसी दूसरी भाषा से तताकथित युद्ध से निपटने का रास्ता है भी नहीं। भारत वार्ता के माध्यम से,व्यापार के माध्यम से तथा सांस्कृतिक सहभागिता के माध्यम से एक माहौल बना कर युद्ध रोकना चाह रहा है, और यह प्रयास पूर्व 25 वर्षो से अमल में लाया जा रहा है। जब कभी भी भारत ने इस तरह के प्रयासों को अंजाम देने का प्रयास शुरू किया, तभी पाकिस्तान की सेना ने ठीक उसी समय सीमा पर शांति भंग कर दी। ऐसे समय में सिर पर हात रख लेने के अलावा हमारे पास कुछ भी शेष नहीं बचा।
पाकिस्तान का एकमात्र उद्देश्य है, भारत के साथ अधोषित युद्ध। वह अपनी नीति पर पूरी तरह कायम रहा है, और आगे भी रहेगा। हम ने जब भी वार्ता के लिए प्रवास किया, तो उस ने हमारे प्रयास को हमारी कमजोरी ही समझा। विश्व को दिखाने के लिए वह स्वेम भी वार्ता चलते रहने की हिमायत करता है, ता की दुनिया में यह सन्देश जाय की यह शांति चाहता है। इस अपनी नीति का प्रचार कर अमेरिका जैसे बड़े मुल्कों या जिन को अपने समर्थन में शामिल कर लिया है, उन से अधिक से अधिक धन सहायता राशि के रूप में हड़प सके। कुल मिला कर हम कह सकते है, की यह रणनीत पाकिस्तान की बेमिसाल है, और भारत को कभी भी तसल्ली से न बैठने देने के अपने उद्देश्य में पूरी तरह से सफल भी है।

पाकिस्तान की आतंकी गति विधियाँ भी हमारे देश में निर्वाध रूप से एवं सफलता पूर्वक श्रीजित होती रहती है। आये दिन जगह – जगह आतंकी गति विधियों की पुनरबृति हमें देखने को मिलती रहती है। पंजाब ,कश्मीर , बंबई, संसद और न जाने कहाँ – कहाँ ये आतंकी बेखौफ अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहते है। उंन्हे पता है, की भारत एक साहिसूण राष्ट्र है, यहाँ पर लोकतान्त्रिक व्यवस्था है, यहाँ सेकुलरिस्म की नीतियों का हर हाल में आदर किया जाता है। उंन्हें कुछ दिन पहले तक यह भी विश्वाश था, की भारत में किसी भी आतंकी को मृत्यु दंड नहीं दिया जायगा, और बहुत संभव है की पाकिस्तान की पेशकश पर हम पकडे गए आतंकी को भी शायद आदर के साथ वापस कर देंगे। कियोंकि भारत एक शांति प्रिय राष्ट्र है, और यहाँ मानवाधिकार की सत्ता सर्वोपरि है। इस प्रकार, भारत आतंकियों के लिए सबसे सुरक्छित एवं सुविधा जनक कार्यस्थली मानी जाती है,विश्व भर में। देश में हमारे राजनैतिक दलौ में भी राष्ट्रीय स्मिता को ले कर अपने – अपने मत है, और राष्ट्रीय समस्याओं पर भी हम एक जुट होने में संकोच करते हुए अपनी – अपनी श्रेष्टता कायम रखने का पूरा – पूरा प्रयास करते है,जो दुनिया में और खास कर पाकिस्तान से छुप नहीं पता है, और यह कारण भी पाकिस्तान के हौसले बुलंद करता है।

पाकिस्तान को हम पाकिस्तान की नीतियों से ही भरपूर जवाब दे सकते है। हमें उसे अपनी शक्तियों और सामर्थ का परिचय निरंतर देते रहना चाहिए।सीमा छेत्र में उनकी तर्ज पर ही, वह स्थित पैदा कर दे,की उनके सैनिक, सीमा छेत्र में आने से ही भय खाए। पाकिस्तान सीमा छेत्र में, सामान्य नागरिकों के रहने की तमाम सम्भानो को भी सुनयप्रय कर देना चाहिए। आतंवादियों के शीमा छेत्र में पकडे जाने पर उन पर न्यायिक प्रकिर्या सैनिक कानून के अंतर्गत व्यवस्था कर देनी चाहिए।

चूकी कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है , इस प्रकार, इस के विरोध में किसी भी वार्ता को, राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में रखना ही चाहिए । हमारे लोकतान्त्रिक पद्धति में संविधान ने अपने नागरिको को मौलिकाधिकार प्रदान किये है ,किन्तु राष्ट्र की स्मिता की कीमत पर, हम किसी भी विचार को, अधिकृत नहीं कर सकते ,यह विशुद्ध रूप से राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में ही आएगा।

राष्ट्र की आंतरिक और बाह सुरक्छा को, तमाम खर्चो को कम करके, अथवा रोक कर ,आधुनिक एवं समृद्ध, अविलम्ब बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाइये। इस तरफ हमने कभी भी गंभीरता से ध्यान ही शायद नहीं दिया। इस के आभाव में हम से ईर्षा रखने वाले राष्ट्र हमारे विकास कार्य को कही न कही प्रभावित करते रहेंगे,और हमारी दशा “नौ दिन चले अढ़ाई कोस ” जैसी ही बनी रहेगी।

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