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वेद प्रताप वैदिक – “पुराण “

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आम जन मानस के लिए “वैदिक जी “का नाम अब तक अपरचित ही रहा है। लेकिन पिछले 3 – 4 दिनों में देश के संसद से ले कर सड़कों तक, एक ही नाम पर चर्चा हो रही है, और वह है – “वैदिक जी”। टी,वी , चैनलों पर इस समय 80 % कार्यक्रमों में केवल वैदिक जी ही हावी है, देश में ही नहीं अपितु विश्व पटल पर वैदिक जी छाये हुए है। मुझे लगता है, वैदिक जी के जीवन काल का यह व्यस्तम समय चल रहा होगा।

वैदिक जी को एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में मीडिया ने परिचित कराया था। लेकिन जैसे – जैसे चर्चा आगे बड़ी, उनके वरिष्ठता पर भी प्रश्न उठने लगे। कुछ संस्थओं से भी उंन्हें जोड़ा गया ,साथ ही सभी राजनैतिक दलों से भी उनके घनिष्ठ सम्बन्धो की चर्चा है , विशेष कर कांग्रेस से। कुछ लोग उंन्हें आर,एस,एस और भा ,ज ,प ,से भी जोड़ कर भी भी देख रहे है।
वैदिक जी के ख्यातविषय का कारण रहा है, उनकी पाकिस्तान जा कर, आतंकवादी शिरोमणी हाफिज शईद से लगभग एक घंटे की मुलाकात। इस मुलाकात को यद्यपि साक्छात्कार का नाम वैदिक जी दे रहे है,पर तमाम वार्ताओं को सुन कर, यह मात्र एक मुलाकात ही लगती है।
हाफिज सईद से मुलाकात कर पाना, आज दुनिया का सबसे मुश्किल और खतरनाक काम है। आज पाकिस्तान के आई ,एस ,आई का सबसे बेशकीमती हीरा है – हाफिज सईद ,जिसको आई ,एस ,आई अपनी विशेष सुरक्छा में रखती है। इस अवस्था में किसी का हाफिज से बिना किसी ठोस कारण ,जो हाफिज को मुलाकात करने के लिए राजी कर ले, के बिना मुलाकात हो ही नहीं सकती थी। फिर वैदिक जी ने कौन सी ऐसी वजह पैदा कर कर ली, की हाफिज ने अपना एक घंटे का समय, बड़े इत्मीनान से वैदिक जी को दे दिया, और मुलाकात की फोटो भी नेट पर डाल दी गयी।

यह सिलसिला शुरू होता है,श्री मणी शंकर अय्यर के फोन से ,जिस के द्वारा उंन्होंने वैदिक जी को अपने एक डेलिगेशन में पाकिस्तान चलने लिए आमंत्रित किया था। इस डेलिगेशन में श्री सलमान खुर्शीद जी एवं कुछ और गढ़मान्य लोग भी शामिल थे। सुना गया की इस में कुछ लोग तुरंत ही लौट आए, कुछ एक – दो दिन के बाद लौटे,किन्तु वैदिक जी वहाँ रूके रहे, और वहाँ से एक बड़ी खबर बन कर भारत लौटे।

यहाँ कुछ सवाल जेहन में स्वाभाविक रूप से उठते है, जैसे- वैदिक जी की जुबानी ही यदि मान लिया जाय- कि वे अचानक बुलावे पर पाकिस्तान गए,तो फिर यह मानना गलत हो जायगा, कि उनका हफ़ीज़ से मिलने का कार्यक्रम पहले से था। यदि ऐसा कोई विचार नहीं था ,तो अचानक यह विचार कैसे आया ? फिर हाफिज सईद से मुलाकात की व्यवस्था कैसे हुई ? जिसने भी इसे अमली जामा पहनाया होगा,उसने कुछ समय पूर्व इस का अस्वासन भी दिया ही होगा। तभी वैदिक जी ने पाकिस्तान में रुकने का अपना कायक्रम कुछ दिनों के लिए बड़ा दिया होगा। चर्चा है कि वे पत्रकार की हैसियत से भी हाफिज से नहीं मिले, इस हैसियत की यदि चर्चा हो जाती तो शायद हाफिज मिलने से भी इंकार कर देता। इस मुलाकात में पत्रकार से सम्बंधित कोई सामान भी प्रकाशित फोटो में नहीं दिख रहा है।

हिदुस्तान लौट कर शायद उन्होंने इस प्रकरण पर कोई चर्चा, कहीं भी नहीं की, न ही कोई इस मुलाकात की समीक्छा ही प्रेस के माध्यम से चर्चा में आई। इस प्रकरण की मीडिया में चर्चा आने के बाद वैदिक जी के बयानों का स्वरुप भ्रामक रूप लेता चला गया। इन बयानों पर प्रेस द्वारा स्पस्टीकरण मांगने पर, स्थित और भी विचारणीय होती प्रतीत होने लगी। प्रायः देखा गया कि मीडिया के प्रश्नों के सीधे उत्तर के स्थान पर वे अपने कामों का विवरण, अपने संपर्क सूत्र , अपनी ख्याति आदि को विस्तार देने लग जाते थे,यहाँ तक कि प्रश्न के सीधे उत्तर देने के स्थान पर हठवादिता पर उतर आते थे। वैदिक जी के इस ब्योहार ने उन्हें और भी चर्चित कर दिया। कश्मीरयों के आजादी की ही बात , जो उंन्होने की है, इस आजादी से उनका किया अभिप्राय है ? इस विषय ने चर्चा को फिर से ताजा कर दिया।

वैदिक जी ने अपने कांग्रेसी मित्रों के डेलिगेशन में शरीक हो कर, लगता है भारी भूल कर दी। अब इन्हीं मित्रों ने उन को लेकर, देश में भारी तूफ़ान खड़ा कर दिया है। हाफ़िज़ सईद के साथ मुलाकात को ले कर कांग्रेस ने वर्तमान सरकार पर भी शंका की उंगली उठा दी है। यद्यपि सरकार ने इस प्रकरण से अपनी अन्नभिगता जताते हुए अपनी स्थित स्पस्ट कर दी है। पाकिस्तान में भारतीय दूतावास ने भी इस प्रकरण में अपनी संलिप्तता एवं पूर्व किसी जानकारी से साफ इनकार कर दिया है। अब खोज का मात्र एक ही विषय बचा है, की इस मुलाकात का प्रायोजक कौन था।

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