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सामंती आत्मा का लोकतान्त्रिक स्वरुप

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कांग्रेस के श्री मणिशंकर अय्यर ने मोदी को समुद्र तक पहुँचने की बात कही। श्रीमती सोनिया गांधी ने मोदी को झूट का जाल बुनने वाला बताया। राहुल जी ने मंदिर में देवी को पूजने वालों को महिलाओं के साथ अनुचित व्योहार करने वाला बताया।

पिछले 60-62 वर्षो से भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी की आज की सोच को देख कर आश्चर्य होता है, और यह सोचने पर देश को विवश होना पड़ता है, की इस चरित्र के लोगो ने, देश को ही नहीं अपितु कांग्रेस पार्टी को भी आज अपने निम्नतम स्तर पर ला कर खड़ा कर दिया है। पिछले 10 वर्षो से, बैसाखी पर चलती आ रही कांग्रेस से आज बैसाखी का भी सहारा छिन गया है। इस प्रकार की असहाय परिस्थितयों में किसी के भी वैचारिक संतुलन का असमान्य हो जाना, अत्यन्त स्वाभाविक हो जाता है।

कांग्रेस पार्टी का वर्तमान स्वरुप लोकतान्त्रिक चोला ओढ़े है, किन्तु आत्मा एक परिवार की धरोहर है। साम्राज्यवादी विचारधारा ने लोकतान्त्रिक भेष धारण कर रखा है। यहाँ श्रेष्ठता का मापदंड ज्ञान व अनुभव नहीं अपितु तंत्र की आत्मा की आकांछाये एवं उसका आदेश है। इस का साक्छात उदाहरण 10 वर्षो का श्री मनमोहन सिंह जी का शासन काल रहा है। एक अनुभवी एवं प्रबुद्ध व्यक्ति का कांग्रेस ने किस प्रकार इस्तमाल किया है । आज देखा और समझा जा सकता है, कि राहुल जी को भारत वर्ष के प्रधानमंत्री पद पर बैठाने की आकांछा ने ही कांग्रेस को आज की स्थित में ला खड़ा किया है। और शायद यही आकांछा आज कांग्रेस की आगे की राह निर्धारित कर रही है। श्री प्रणव मुकर्जी सरीखे ” चाणक्य ” की उपयोगिता को महत्व न दे कर, उंन्हें राष्ट्रपति पद पर बैठा कर, किनारा कर लिया गया।

कांग्रेस अपनी हार की जिम्मेदारी, अपने द्वारा जनता हित में किये गए कार्यो को, जनता के समक्छ ,कुशलतापूर्वक न रख पाने को बता रही है। ऐसा न कर पाने का कारण भी बताना चाहिए। ऐसा न कर सकने की क्या वजह रही, किन साधनों का उनके पास आभाव रहा, जो वह यह न कर सकी। देखने से लगता है की, कांग्रेस ने कभी जनता को तबज्जे दिया ही नहीं, योजनाऍ जो उसने मुनासिब समझी, बनाई और लागू कर दी, उस योजना का कितना लाभ जनता को मिला, या मिला भी की नहीं, इससे बेखबर। अपने लोगो के बीच, उनकी तालियों के बीच – जनता की पुकार ,कराह ,वेदना सब दब कर रह गई। राजीव गांधी जी की दसको पहले की बात – ‘ की योजनाओं का केवल १५% ही आम जनता तक पहुँच पाता है’ आप के चिंता का विषय कभी रहा क्या ? यदि रहा तो, आज दशकों बाद भी योजनाओं का कितना हिस्सा जनता के पास पहुंच रहा है ? क्या यह आंकड़ा १५% से आगे बढ़ा ? यदि नहीं बड़ा तो क्या ८५% का पता चला, की वह कहाँ जा रहा है।?

आज इंन्ही कारणों से देश के विपक्छ का नेता न होने के कारण, वर्तमान सरकार के निरंकुश होने की संभावनाए पैदा हो गई है, जो देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के हित में नहीं है। यह एक चिंता का विषय है। इस का एक मात्र विकल्प है, की आप जनता से संवाद करने की परम्परा की नीव डालें। एक रात्रि को किसी निर्धन परिवार के घर में समय बिता लेना या साधारण रेल के डिब्बे में यात्रा करना, मात्र एक रोमांचक अनुभव हो सकता है। इस जन संवाद के लिए गांधी जी की तरह जीवन का एक भाग आम जन को लिए समर्पित करना पड़ेगा। इस जन- संवाद के लिए, एक अदद संवेदनाओं से भरा दिल भी होना आवश्यक है । लोकतंत्र में लोकहित के अनुभवों के आधार पर, इसे जाने बिना , आप लोकहित में कुछ भी नहीं कर सकते। ये अनुभव सुन कर ,पढ़ कर अथवा फिल्म आदि देख कर, जाना नहीं जा सकता। आप की प्रतिस्पर्धा, लोकहित को ले कर एक “चाय बेचने वाले ” से है। क्या इस की कल्पना भी आप ने अभी की थी ? यही लोकतंत्र है।

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