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‘सिविल सेवा परीक्षा ‘ के नवीन प्रारूप 2011,

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आज कल ‘सिविल सेवा परीक्षा ‘ के नवीन प्रारूप 2011, को ले कर देश भर में चर्चा का माहौल बना हुआ है। राज्यसभा चैनल एवं डी डी चैनलों पर प्रमुखता से इस विषय पर बहस का प्रसारण चल रहा है। चर्चा में आयोग के आ प्रा,वरिष्ठ अधिकारी, अ,प्रा,भारत सरकार के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी,सिक्चविद एवं आंदोलित छात्रों के प्रतिनिधिगण सम्मलित थे। चर्चा का विषय हिंदी भाषी पृष्ठभूमि के छात्रों को परिक्छा में हो रही असुविधा को ले कर था,जिसका कारण ‘अलघ ‘कमेटी – २०११ की शिफारिश के आधार पर परिक्छा के प्रारूप का नवीनीकरण था।

1979 में ‘कोठारी आयोग’ की सिफारिशों के आधार पर परीक्षा में अंग्रेजी माध्यम के साथ -साथ भारतीय अन्य भासाओ को भी परिक्छा के माध्यम के रूप में समावेशित करने का निर्णय लिया गया। परिणामस्वरूप हिंदी माध्यम के छात्रों की उपरोक्त परिक्छा में भारी तादाद में भागीदारी बड़ी। किन्तु 2011 के अलघ कमीशन की सिफारिश के आधार पर आयोग ने परिक्छा का एक ऐसा प्रारूप तैयार कर दिया, जिसमे हिन्दी भाषा का एक ऐसा स्वरुप सामने आया जो हिन्दी भाषी छात्रों के समझ से सर्वथा परे रहा। जब सी – सैट में प्रयुक्त हिन्दी शब्दों की जानकारी बहस के दौरान हिन्दी के प्रवक्ता महोदय ने देना शुरू किया, तो सभी आमंत्रित महानुभावों को इन रूपान्तरित हिंदी शब्दों पर भारी आश्चर्य भी हुआ और शायद अफ़सोस भी। इन शब्दों को कुछ लोगो ने “गूगल शब्दावली ” का भी नाम दिया। यह प्रारूप हिन्दी भाषा एवं भारतीय अन्य भाषाओं के छात्रों को हतोत्साहित करने जैसा प्रयास ही प्रतीत होता है।

बहस में दूसरा विषय, प्रवेश परिक्छा के सामान्य ज्ञान प्रश्न पत्र एवं सीसैट प्रश्न पत्र को ले कर, भ्रान्ति की स्थित दिखी। संभवतः सामान्य ज्ञान के कट आफ अंक 30 निर्धारित किये गए थे,तथा सीसैट में कटऑफ अंक 70 निर्धारित थे। इस प्रकार यदि हिन्दी माध्यम का छात्र सामान्य ज्ञान के प्रश्न पत्र को यदि कर ले किन्तु सीसैट में असहज हो जाए तो इस स्थित में वह परिक्छा के अगले चरण में प्रवेश से वंचित हो जायगा, किन्तु यदि अंगेजी माध्यम का छात्र सीसैट प्रश्न पत्र को सफलता पूर्वक निकाल ले तथा सामान्य ज्ञान में असहज हो जय, तो वह परीक्छा के अगले चरण के लिए पात्र हो जायगा।

इस प्रकार बदले 2011 के प्रारूप में मुख्या रूप से प्रारंभिक परिक्छा के सी सीसैट पेपर से मुख्या असंतोष ने जन्म लिया। इस नए प्रारूप ने परिक्छा में उतक्रीस्ठा के स्थान पर बहस एवं आंदोलन को जन्म दिया।

अन्ततोगत्वा चर्चा में सम्मलित सभी महनभावो ने एक मत हो कर स्वीकार किया की , परिक्छा के स्वरुप को बदलने की आवश्यकता नहीं, अपितु विशेष संशोधनों की आवश्यकता अनिवार्य है।

उपरोक्त सन्दर्भ में एक विचार मन में जन्म लेता है। देश के लिए श्रेष्ठतम प्रशासनिक सेवा के पात्रों के चयन प्रक्रिया को संचालित करने वाली संस्था का गठन, निश्चित रूप से देश के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों, अनुभवी , विवेकशील एवं नैतिकचरित्र से परिपूर्ण लोगो द्वारा ही होता होगा। इस प्रकार हम यह मन कर चलते है , की आयोग में सिविल सेवा के लिए प्रतिभावों के चयन की प्रतिक्रिया के प्रारूपों का निर्माण कार्य, इन प्रारूपों की विवेचना एवं विश्लेषण की सत्तत प्रक्रिया चलती ही रहती होगी। इस अवस्था में संस्था द्वारा संचालित किसी भी परिक्छा के प्रारूप पर यदि तर्क सांगत ढंग से उंगली उठती है, और उसकी परिणीति, छात्रों द्वारा आंदोलन में होती है, तो यह अत्यंत ही छोभ का विषय हो जाता है।

यदि छात्रों का आंदोलन परिक्छा के प्रारूप में संशोधन के निष्कर्ष पर संस्था को बाध्य कर देता है, तो संस्था के सामर्थ ,कार्यछमता ,उनकी श्रेष्ठता पर एक गम्भी प्रश्न का जन्म होगा। इस प्रश्न का उत्तर संस्था को हर हाल में देना ही होगा। क्यों न यह मन लिया जाय की संस्था अचरसहिंता के आधार पर निष्पक्छ चयन प्रक्रिया चला सकने में असमर्थ है,और इस आधार पर संस्था को दंड का पत्र होना अनिवार्य हो जाता है।

एक अति महत्वपूर्ण संस्था को जवाबदेह हर हाल में होना ही चाहिय, एक निरंकुश संस्था देश के साथ कभी भी न्याय नहीं कर सकती है।

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