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“बिटिया का गांव

vichar
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16 दिसम्बर 2013 के दैनिक जागरण समाचार पत्र में “बिटिया का गांव अब भी बदहाल ” नाम से लेख प्रकाशित हुआ है। इस में भी नेताओ की छीड़ होती स्मरणशक्ती का रोना रोया गया है,वह इस उम्मीद के साथ कि शायद इसे पड़ कर याददास्त वापस आ जाए।
खैर – प्रयास अछाई के लिए प्रसंसनीय ही होता है। तमाम वादो का भी जिक्र है। – बिटिया के नाम से एक्सप्रेस ट्रेन चलाने का वादा ,बिटिया के नाम पर प्राथमिक स्वास्थ केंद्र खोलना ,बिटिया के गांव में एम्स व ट्रामासेन्टर खोलना व अशोक चक्र एवं डी.डी.ए में फ्लैट आदी। मुझे विश्वाश है की और भी तमाम वादे किये गए होंगे और भी बहुत कुछ दिया गया होगा।
इस सब को पड़ कर जेहन में एक प्रश्न उठता है,कि यह दुष्कर्म न तो पहला था,और न ही आखरी। इस के पहले भी तमाम घटनाए हो चुकी है,और आज तक इन घटनाओ में किसी भी प्रकार की कोइ कमी भी नहीं आई है। फिर इतना सब इस बिटिया के लिए – और जो बेटियाँ इस के पहले और इस के बाद की पीड़िता है उन का किया ?
मुझे लगता है कि देश की तमाम दुष्करंपीड्ताओ के प्रति हम अपने को उत्तरदाई मानते है,तो हमें इन्ह सरकारी सहायता के साथ – साथ एक एसी ब्यवस्था देने का संकल्प अपनी द्रिड़ इक्छा शक्ति के साथ लेना चहिये,जिस ब्यवस्था में इस प्रकार के कर्म की कल्पना मात्र से रूगड़ मस्तिष्क भय से कांप जाए।
केवल आश्वाशन ,भाषण ,शांति गोष्टी नहीं ,ब्यवस्था को कार्यरूप देने का संकल्प, हर प्राथमिकतों को रोक कर।

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